कार्यकर्ता सम्मेलन में हुड्डा ने दिखाया दम, हाईकमान पर बना पाएंगे दबाव या चुनेंगे अलग राह ? - चंडीगढ़
पोस्टर में तो सोनिया और राहुल गांधी दिखे लेकिन हुड्डा गुट के ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं ने अपनी स्पीच में एक बार भी उनके नाम का जिक्र तक नहीं किया. एक तरफ ज्यादातर विधायक हाईकमान से हुड्डा को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने की ही बात करते रहे.
चंडीगढ़ः रोहतक में रविवार को एक बार फिर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने अपना शक्ति प्रदर्शन कर कांग्रेस हाईकमान को अपनी ताकत दिखाई. हम शक्ति प्रदर्शन इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस कार्यक्रम को कार्यकर्ता सम्मेलन का नाम दिया गया था. जिसमें हुड्डा गुट के सभी वर्तमान 13 विधायकों के साथ साथ ही 2 दर्जन से अधिक पूर्व विधायकों ने भी शिरकत की. इस दौरान हुड्डा के बागी तेवर भी नज़र आए. उन्होंने कहा कि वे लोगों के लिए हर तरह की कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं.
इस दौरान पोस्टर में तो सोनिया और राहुल गांधी दिखे लेकिन हुड्डा गुट के ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं ने अपनी स्पीच में एक बार भी उनके नाम का जिक्र तक नहीं किया. एक तरफ ज्यादातर विधायक हाईकमान से हुड्डा को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने की ही बात करते रहे. वहीं सम्मेलन के दौरान कांग्रेसी नेताओं ने आलाकमान पर भी सवाल दागे.
इन नेताओं ने कहा कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथ में होती तो लोकसभा चुनावों के नतीजे अलग होते. भले ही लोकसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा न खुद की और न ही बेटे दीपेंदर हुड्डा की सीट बचा पाए हों. वहीं बैठक में यह भी तय किया गया कि 18 अगस्त को रोहतक में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में परिवर्तन रैली होगी.
बैठक में भले ही 13 कांग्रेस विधायक पहुंचे हों लेकिन इस कार्यकर्ता सम्मेलन में गुटबाजी साफ नजर आई. सम्मेलन में केवल हुड्डा गुट के ही नेता नजर आए जबकि अशोक तंवर, किरण चौधरी, रणदीप सुरजेवाला और कैप्टन अजय यादव सहित कई बड़े नेता सम्मेलन से नदारद रहे. ऐसे में सवाल यही है कि इस कार्यक्रम के मायने क्या थे ?
क्या है हुड्डा के कार्यकर्ता सम्मेलन के मायने ?
दरअसल भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट लंबे वक़्त से हुड्डा को प्रदेश में पार्टी की कमान सौपने की मांग करता रहा है. इतना ही नहीं हुड्डा गुट के नेता अशोक तंवर गुट से हमेशा दूरियां बनाए रखते हैं. इस बार फिर से हुड्डा गुट हाईकमान को अपनी ताकत दिखा रहा है. वो भी तब जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा अलग पार्टी की चर्चा भी राजनीतिक गलियारों में जोरों पर है.
माना जा रहा है कि हुड्डा गुट हाईकमान पर फिर से दबाव बनाकर हुड्डा को प्रदेश की कमान उनको देने के लिये जोर लगा रहा है. लेकिन इसका असर होगा या नहीं यह कहना मुश्किल है, क्योंकि पहले भी हुड्डा गुट के ये प्रयास सिरे नहीं चढ़ पाए हैं. ऐसे में अब यह हो पाएगा कहा नहीं जा सकता.
18 अगस्त को हुड्डा गुट भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में परिवर्तन यात्रा शुरू कर रहा है. जिससे हुड्डा हाईकमान को अपनी ताकत दिखाने के साथ ही यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि उनके साथ जनता का कितना समर्थन है. जानकर मानते हैं कि हुड्डा ने 18 अगस्त की परिवर्तन रैली की तारीख इसलिये भी रखी ताकि हाईकमान पर दबाव बनाया जा सके और अगले 14 दिनों में हाईकमान भी उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर किसी निर्णय पर पहुंच सके.
माना जा रहा है कि हुड्डा परिवर्तन रैली करके अपनी ताकत को आजमाने के साथ ही जनता का समर्थन पाने की भी कोशिश करेंगे. जानकर मानते हैं कि हो सकता है अगर हाईकमान ने हुड्डा को अपना समर्थन नहीं दिया तो वे अपनी पार्टी बना लें. इसके लिए उनकी नजर जनता के समर्थन के साथ ही प्रदेश की नई नवेली पार्टी जेजेपी पर भी रहेगी.
क्या जेजेपी के साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे हुड्डा ?
जेजेपी हुड्डा के साथ जाएगी, इसकी सम्भावनाएं कम ही दिखती है क्योंकि दुष्यन्त चौटाला जानते हैं कि कांग्रेस आज के दौर में खत्म हो चुकी है. इनेलो भी अंतिम दौर में है. वहीं हुड्डा अगर अलग दल के साथ उनके साथ चुनाव मैदान में उतरने की पेशकश करते हैं, तो भी दुष्यंत अपना नफा नुकसान आंकने के बाद ही कोई फैसला लेंगे. क्योंकि दुष्यंत एक- दो चुनाव की राजनीति नहीं कर रहे हैं, वे भविष्य को लेकर रणनीति जांचने के लिए मैदान में उतरे हैं. ऐसे में दुष्यंत हुड्डा के साथ जाकर अपने नुकसान करने की कोशिश नहीं करेंगे.
इसकी वजह यह भी है कि हुड्डा और दुष्यंत अगर साथ आते हैं तो उन पर जाटों की राजनीति करने या फिर जाट नेता होने का टैग लग जाएगा. जोकि दुष्यंत नहीं चाहेंगे.
क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसे में प्रदेश में जाट बनाम नॉन जाट चुनाव होगा और वो उनकी भविष्य की राजनीति के लिए ठीक नहीं होगा और वे अपने ऊपर जाटों की राजनीति का टैग लगाकर खतरा मोल लेने की हिम्मत नही करेंगे.
क्या हुड्डा और इनेलो होंगे साथ ?
हुड्डा की भविष्य की रणनीति पर सभी राजनीतिक जानकारों की नजर है. कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि हुड्डा, अभय चौटाला को चुनाव में साथ ले सकते हैं. लेकिन इसकी सम्भावनाएं कम ही दिखाई देती हैं. क्योंकि इनेलो से जेजेपी के बनने के बाद लगातार इनेलो कमजोर हुई है और उसके कई विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी के पाले में जा चुके हैं.
इनके बाद कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि विधानसभा चुनावों तक इनेलो-बीजेपी के साथ पूरी तरह खड़ी होगी. वर्तमान हालात भी उसी ओर इशारा कर रहे हैं. लेकिन इनेलो अभी भी मैदान में है. ऐसे में हुड्डा की आगे की रणनीति उसको ध्यान में रखकर भी होगी.
अभय चौटाला, हुड्डा के साथ जाएंगे ऐसा वर्तमान में दिखाई नहीं देता. क्योंकि उन पर भी आय से अधिक सम्पति मामले में केस चल रहा है, वे ऐसे में बीजेपी से बैर लेंगे इसकी सम्भावनाएं कम ही दिखाई देती हैं. ऐसे में हुड्डा खुद के दम पर चुनाव मैदान में अलग पार्टी के साथ उतर पाएंगे यह देखना दिलचस्प होगा.
हुड्डा के लिए भी आसान नहीं है राह
हुड्डा बेशक अपनी पूरी ताकत लगाकर हाईकमान को दबाव में लाने की कोशिश करें, लेकिन अगर हाईकमान हुड्डा के आगे नहीं झुका तो उनकी राह भी आसान नहीं होगी. क्योंकि अलग दल बनाकर उसको चलाना आसान नहीं है और वर्तमान में बीजेपी की जो स्थिति है, उसमें कोई भी नया दल आसानी से उससे पार नहीं पा सकता.
ऐसे हालात में हुड्डा अलग दल बनाकर या कांग्रेस की अगुवाई कर बीजेपी को रोक पाएंगे इसकी सम्भावनाएं कम ही हैं. हुड्डा खुद मानेसर जमीन मामले और एजेएल केस में कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं और इसका दबाव भी उन पर बढ़ रहा है. कांग्रेस ऐसे में हुड्डा पर दांव लगाएगी इसकी भी उम्मीद कम ही है.
वहीं अशोक तंवर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, किरण चौधरी, कुमारी सैलजा और कैप्टन अजय यादव के उनकी इस मुहिम में साथ ना होने के चलते भी हुड्डा हाईकमान पर दबाव नहीं बना पा रहे हैं और ये नेता कहीं न कहीं भीतर खाने उनकी दावेदारी को कमजोर कर रहे हैं. ऐसे में अब 18 अगस्त की हुड्डा की परिवर्तन यात्रा किस दिशा में जाती है यह देखना दिलचस्प होगा.