चंडीगढ़ःहरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 बड़े-बड़े राजनीतिक दलों और खुद को सियासी तुर्रम खां समझने वाले लोगों को संदेश दे गया. 2014 से 2019 तक प्रदेश में अकेले सत्ता की मलाई खाने के बाद 75 पार का नारा देकर चुनाव मैदान में उतरी बीजेपी जहां नतीजे आने पर 40 सीटों पर सिमट गई, वहीं एड़ी-चोटी का पूरा जोर लगाकर भी कांग्रेस 31 के आंकड़े को पार नहीं कर सकी. 2014 में प्रदेश में 19 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी दल बनी इनेलो इस चुनाव में सिर्फ 1 सीट पर सिमट गई, वहीं 11 महीने पहले बनी नई नवेली जननायक जनता पार्टी ने 10 सीटें जीतकर राजनीतिक पंडितों के आंकलन की हवा निकाल दी, 7 निर्दलीयों ने भी जीत हासिल कर अपना दम दिखाया. वहीं हरियाणा लोकहित पार्टी को भी 1 सीट मिली.
आम आदमी पार्टी का निकला दम
इन सबके बीच दिल्ली में सत्ता का स्वाद ले रही आम आदमी पार्टी भी पूरे जोर शोर से हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपना दम दिखा रही थी. हरियाणा के ही हिसार में पैदा हुए अरविंद केजरीवाल की पार्टी पहले तो राज्य की सभी 90 सीटों में से सिर्फ 46 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतार पाई और जब नतीजे सामने आए तो पार्टी के सियासी सूरमा राजनीति की रेस में बेदम होकर गिरते-पड़ते दौड़ने वाले खिलाड़ी नजर आए.
AAP के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त
आम आदमी पार्टी के सभी 46 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. 46 प्रत्याशियों में से बमुश्किल से 2 या 3 प्रत्याशी 2000 से ज्यादा वोटों का आंकड़ा पार कर सकें. हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी 0.48 प्रतिशत वोट ही पा सकी, जोकि नोटा के 0.52 प्रतिशत से भी कम है. कुल मिलाकर आम आदमी पार्टी के लिए हरियाणा इलेक्शन किसी बुरे सपने जैसा ही साबित हुआ.
दिल्ली इलेक्शन में दिखेगा हरियाणा का असर !
लेकिन अब इस पार्टी को एक और इलेक्शन का सामना करना है, अगले साल दिल्ली में विधानसभा का चुनाव होना है. हरियाणा में अगर पार्टी को 1-2 सीटें भी मिल गई होती तो पार्टी के लिए कुछ सकारात्मक हो गया होता. दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी सकारात्मक रुख के साथ दम दिखाने के लिए उतरती.
राजनीति के जानकार मानते हैं कि पार्टी की पतली हालत के चलते ही अरविंद केजरीवाल या पार्टी का कोई दूसरा बड़ा नेता हरियाणा में प्रचार करने तक नहीं आया क्योंकि पार्टी की हार का कीचड़ उनकी दामन पर भी पड़ता और उनकी छवि प्रभावित होती.