भिवानी:भिवानी मुक्केबाजों की वो नगरी है, जिसने देश को ओलंपियन मुक्केबाज विजेंद्र सिंह, अखिल कुमार, जितेंद्र कुमार और दिनेश सांगवान जैसे खिलाड़ी दिए हैं और आगे भी ना जाने भिवानी देश को और कितने ऐसे ही मुक्केबाज देगा, लेकिन मुक्केबाज बनना इतना आसान नहीं होता है. कड़ी मेहनत, अनुशासन और अथक संघर्ष ही एक मुक्केबाज को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ले जाता है.
आखिर भिवानी की धरती में ऐसा क्या खास है जिसकी वजह से ये बॉक्सरों की फैक्ट्री कहलाता है. ये जानने के लिए ईटीवी भारत देश के लिए मुक्केबाजी में पदक जीतने का ख्वाब देख रहे नन्हें बॉक्सरों के बीच पहुंचा.
दिन रात एक कर मेहनत कर रहे हैं जतिन
कालुवास गांव के रहने वाले जतिन कुमार यू तो सिर्फ 12 साल के हैं, लेकिन उनमें देश के लिए पदक जीतने का जज्बा कूट कूटकर भरा है. जतिन सुबह और शाम दोनों वक्त साइकिल से बॉक्सिंग अकादमी जाते हैं. करीब तीन घंटे तक कड़ी मेहनत और पसीना बहाते है, ताकि वो भविष्य में भिवानी के ओलंपियन मुक्केबाजों की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज बन सकें.