चंडीगढ़:हमने मिट्टी से सोना निकलने की कहावत तो सुनी ही है. यह कहावत भारत में दशकों से चरितार्थ भी हो रही है. देश के खाद्यान भंडार में बड़ी मात्रा में अनाज की पैदावार हुई. लेकिन इसके पीछे रसायनों के दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं. इसका कारण यह रहा है कि हमने मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाए जाने वाले प्राकृतिक उपायों को छोड़कर रसायनों पर निर्भरता बढ़ा दी है.
केमिकल के इस्तेमाल से मिट्टी की गुणवत्ता हो रही खराब
बढ़ते प्रदूषण और खेती में केमिकल के लगातार बढ़ते इस्तेमाल से हमारी मिट्टी की क्वालिटी लगातार खराब होती जा रही है. किसानों द्वारा ज्यादा रसायनिक खादों और कीड़ों को मारने वाली दवाओं के इस्तेमाल से मिट्टी के जैविक गुणों में कमी आ रही है. जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में भी गिरावट आ रही है. जिससे कई जगहों पर उपजाऊ मिट्टी लगातार बंजर होती जा रही है. जिसे देखते हुए मिट्टी की सुरक्षा के लिए लोगों को जागरूक करने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में हर साल 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का फैसला लिया.
मिट्टी की सेहत लगातार हो रही खराब
आपको बता दें कि हमारे भोजन का 95 प्रतिशत भाग मिट्टी से आता है और वर्तमान में विश्व की संपूर्ण मिट्टी का 33 प्रतिशत पहले से ही बंजर या खराब हो चुका है. खेतों की मिट्टी के लिए जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सूक्ष्म तत्वों का अनुपात बिगड़ गया है, जिससे मिट्टी की सेहत लगातार गिरती जा रही है. खराब होती देश की मिट्टी को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil health card) योजना शुरू की थी. इसके तहत हर किसान के खेत की मिट्टी की जांच करके उसके रिजल्ट के आधार पर ही किसानों को पोषक तत्वों की तय मात्रा को इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है.