चंडीगढ़: देश की राजधानी दिल्ली में साल 1985 में बने कानून के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की स्थापना की गई थी. वक्त के साथ इसका दायरा भी बढ़ता गया. हरियाणा के 14 जिले दिल्ली एनसीआर के क्षेत्र में आते हैं. मतलब ये कि हरियाणा का 57 फीसदी एरिया दिल्ली एनसीआर में शामिल है. एनसीआर क्षेत्र के करीब पड़ने वाले प्रदेश के कुछ जिलों में विकास बहुत तेजी से हुआ, लेकिन जैसे ही दिल्ली से हरियाणा के एनसीआर जिले की दूरी बढ़ने लगी तो विकास पीछे चला गया. जिसकी वजह से हरियाणा के लोग अब इन जिलों को एनसीआर से मुक्त करने की मांग कर रहे हैं. यहां के बाशिंदों को कहना है कि समय पर क्षेत्र का विकास तो नहीं हो पा रहा है, लेकिन पाबंदियां पहले लगा दी जाती हैं. ऐसे में लोगों की मांग है कि उनके जिले एनसीआर की श्रेणी से अलग किए जाए. इसके पीछे की एक और बड़ी वजह है. वो है 10 साल पुराने पेट्रोल और 15 साल पुराने डीजल वाहन बैन होने का नियम.
करनाल के लोगों तक नहीं पहुंचा विकास- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब 120 किमी दूर सीएम मनोहर लाल खट्टर के गृह जिले करनाल को साल 2014 में एनसीआर में शामिल किया गया था, ताकि इस जिले को विकास की नई राह पर ले जाया जाए. लोगों को उम्मीद थी कि जल्द ही जिले में मेट्रो प्रोजेक्ट शुरू हो जाएंगे, लेकिन स्थानीय लोगों पर यह मामला उल्टा ही पड़ गया. एनसीआर में शामिल होने के बाद से ही करनाल में महंगाई दोगुनी हो गई. प्रॉपर्टी से लेकर हर चीज महंगी हो गई है. एनजीटी की पाबंदियों की वजह से इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी असर पड़ रहा है. लोगों का यह भी कहना है कि जिले में विकास तो नहीं हो पा रहा है, लेकिन क्राइम और बेरोगजारी लोगों का पीछा नहीं छोड़ रही है.
विकास कम पाबंदिया ज्यादा- भिवानी जिले को कई साल पहले एनसीआर में शामिल किया गया था. स्थानीय लोगों का कहना है कि एनसीआर के तहत विकास के लिए कोई बजट उन्हें अपने क्षेत्र में लगा हुआ नहीं मिलता. जबकि यहां पर होने वाले खनन कार्य व भवन निर्माण से जुड़े लोगों को अनेक पाबंदियों का सामना करना पड़ता है. जिससे जिले का व्यवसाय व रोजगार प्रभावित हो रहा है. औद्योगिक गतिविधियों में कमी आने की वजह से लोगों की आमदनी प्रभावित हो रही है. ऐसे में जिले के लोगों ने सरकार से एनसीआर के दायरे से बाहर करें. इतना ही नहीं जिले के लिए अलग से बजट का प्रावधान करें ताकि विकास की राह आसान हो सके.
औद्योगिक नगरी सबसे ज्यादा प्रभावित-देश विदेश में विख्यात हरियाणा का पानीपत जिला टेक्सटाइल, हैंडलूम, डाइंग और प्रिटिंग पर निर्भर है. यहां के उद्योगपतियों का कहना है कि पानीपत को एनसीआर में शामिल तो किया गया है, लेकिन सुविधाओं के बजाय यहां उद्योग धंधों से जुड़े लोगों को हमेशा परेशानी झेलनी पड़ती है. दिवाली में दिल्ली के आसपास एयर क्वालिटी खराब होने के कारण पानीपत में कोयले से चलने वाली डाइंग यूनिट्स को 2 महीने तक बंद कर दिया था. अब सितंबर माह तक कोयले से चलने वाली यूनिट्स को बायोमास और पीएनजी पर शिफ्ट करने का आदेश एनजीटी की ओर से जारी कर दिया गया है. यहां के कारोबारियों का कहना है कि एनसीआर में होने की वजह से एनजीटी की पाबंदियों का असर उनके कारोबार को प्रभावित करता है.
सरकार की सिफारिश का विरोध- राज्य सरकार के राजघाट को केंद्र मानकर हरियाणा राज्य के 100 किमी दायरे को एससीआर में शामिल करने की सिफारिश का भी पानीपत के उद्योगपति विरोध कर रहे हैं. उद्योगपतियों का कहना है कि औद्योगिक नगरी पानीपत दिल्ली से मजह 95 किमी दूरी पर है. ऐसे में पानीपत फिर एनसीआर के दायरे में आ जाएगा. उद्योगपतियों का कहना है कि अब वे दूसरे राज्यों में जाकर अपना उद्योग स्थापित करने की सोच रहे हैं, ताकि उन्हें बार-बार एनजीटी की पाबंदियों का सामना करना पड़ सकता है.