चंडीगढ़: यूं तो आपने कई कलाकार देखे होंगे जो अलग-अलग चीजों का इस्तेमाल कर बगीचे को कई तरह की कलाकृतियां बनाकर सजाते हैं. लेकिन आज हम आपको ऐसे गार्डन के बारे में बताएंगे जहां कचरे और बेकार की वस्तुओं से बनी मूर्तियां और कलाकृतियां देखने को मिलेंगी. ये चंडीगढ़ का रॉक गार्डेन है जो दुनिया के विख्यात गार्डेन्स में शुमार है. इस गार्डेन को 1958 में नेक चंद ने बनाया था.
रॉक गार्डन रचनात्मकता और कल्पना का अद्भुत प्रतीक
रॉक गार्डन नेक चंद की रचनात्मकता और कल्पना का एक अद्भुत और उत्कृष्ट प्रतीक है. इस गार्डन में नेकचंद ने घरेलू, शहरी और औद्योगिक कचरे से कई मूर्तियां और कलाकृतियां बनाई हैं. नेकचंद एक कर्मचारी थे जो दिन भर साइकिल पर बेकार पड़ी ट्यूब लाइट्स, टूटी हुई चूड़ियां, चीनी मिट्टी के बर्तन, तार, ऑटो पार्ट्स, चीनी के कप, फ्लश की सीट, बोतल के ढक्कन और बेकार फेंकी हुई चीजों को बीनते रहते और यहां सेक्टर-1 में जमा करते रहते और जब भी उन्हें कुछ समय मिलता वो इन चीजों से बेहतरीन और उत्कृष्ट मूर्तियां और अन्य कलाकृतियां बनाने बैठ जाते.
कूड़े कचरे से कलाकृतियां बनाने का शौक
रॉक गार्डन के बारे में बात करते हुए रॉक गार्डन के निर्माता नेक चंद के बेटे ने अनुज सैनी ने बताया कि उनके पिता नेक चंद का जन्म पाकिस्तान के बेरिया कलां गांव में 15 दिसंबर 1924 को हुआ था. बंटवारे के बाद नेक चंद साल 1950 को भारत में आकर चंडीगढ़ बस गए थे. यहां वे पीडब्लयूडी विभाग में काम करते थे. चंडीगढ़ में उन्हें उस समय एक सड़क निर्माण की जिम्मेदारी मिली थी. निर्माण स्थल के पास ही पीडब्लयूडी विभाग का स्टोर बनाया गया था. यहीं से नेक चंद को कूड़े कचरे से कलाकृतियां बनाने का शौक पैदा हुआ. वे यहां अपना काम खत्म करने के बाद कलाकृतियां बनाने में लग जाते थे और देर रात कर काम करते रहते थे.
'नेक चंद इस जगह को मानते थे देवी-देवताओं का स्थान'
नेक चंद के बेटे अनुज सैनी ने कहा कि वो इस जगह को देवी देवताओं का स्थान कहते थे. इसलिए उन्होंने रॉक गार्डन के अंदर के सभी दरवाजों को कम ऊंचाई का बनाया गया ताकी यहां आने वाले लोग सिर झुका कर आएं. नेकचंद भारत के सर्वाधिक चर्चित कलाकारों में से एक थे. उनकी कृतियां पेरिस, लंदन, न्यूयॉर्क, वाशिंगटन डीसी और बर्लिन जैसे दुनिया के मशहूर शहरों में भी शुमार हैं. उन पर कई किताबें भी लिखी जा रही हैं. कई देशों ने उन्हें मानद नागरिकता की पेशकश की. उन्हें 1984 में पद्मश्री से नावाजा गया, लेकिन नेकचंद फाउंडेशन का मानना है कि भारतीय कला जगत में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें और उच्च सम्मान से नवाजा जाना चाहिए.