चंडीगढ़:किसी भी बीमारी के इलाज से पहले ये जरूरी है कि उस बीमारी की पहचान की जाए और ये पता लगाया जाए कि बीमारी शरीर के किस हिस्से से शुरू हो रही है. इसके बाद डॉक्टर उसका इलाज कर सकते हैं. कई बीमारियां ऐसी हैं जिनके बारे में पूरी जानकारी हासिल करना डॉक्टर के लिए मुश्किल होता है, ऐसे ही बीमारी है कुशिंग सिंड्रोम.
ये एक ऐसी बीमारी है जिसका किसी भी टेस्ट के माध्यम से पूरी तरह से पता नहीं लगाया जा सकता क्योंकि इस बीमारी में मरीज के शरीर में एक छोटा सा ट्यूमर बन जाता है. जिस वजह से व्यक्ति के शरीर में कई तरह के बदलाव होने लगते हैं. इसी ट्यूमर की पहचान करने में डॉक्टर को सबसे ज्यादा दिक्कत आती है.
कुशिंग सिंड्रोम को डायग्नोज करने के लिए PGI में विकसित की गई नई तकनीक चंडीगढ़ पीजीआई में एक ऐसी तकनीक विकसित की गई है जो इस बीमारी के बारे में सारी जानकारी मुहैया करवाएगी. इसके बाद डॉक्टर मरीज का बेहतर तरीके से इलाज कर पाएंगे. चंडीगढ़ पीजीआई में विकसित की गई ये दुनिया की पहली ऐसी तकनीक है.
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इस बारे में जानकारी देते हुए चंडीगढ़ पीजीआई के एंडॉक्रिनलॉजी विभाग के प्रोफेसर संजय भडाडा ने बताया कि कुशिंग सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है. जिसमें मरीज के हार्मोन में बदलाव आता है. हमारे शरीर में एक हार्मोन पाया जाता है. जिसे कोर्टिसोल कहां जाता है.
इसी हार्मोन में बदलाव होने की वजह से शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं. जैसे मरीज मोटापे का शिकार हो जाता है, उसे हाइपरटेंशन, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां हो जाती हैं.
कुशिंग सिंड्रोम में मरीज के शरीर में एक ट्यूमर बन जाता है और ये ट्यूमर हार्मोन में बदलाव के लिए जिम्मेदार होता है. डॉक्टर्स के लिए इस ट्यूमर को ढूंढना ही सबसे बड़ी चुनौती होती है. हालांकि इसे एमआरआई स्कैन के जरिए भी ढूंढा जा सकता है, लेकिन 30 प्रतिशत मामलों में एमआरआई स्कैन से भी यह नहीं मिल पाता.
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नई तकनीक से ये ट्यूमर आसानी से ढूंढा जा सकेगा जिसके बाद डॉक्टर ऑपरेशन के जरिए उस ट्यूमर को मरीज के शरीर से निकाल सकता है और मरीज ठीक हो जाएगा. इस तकनीक को तैयार करने वाली एंडॉक्रिनलॉजी विभाग की डॉ. रमा वालिया ने बताया कि जब हमने इस तकनीक को बढ़ाने के बारे में सोचा हमें खुद ही विश्वास नहीं था कि ऐसा हो पाएगा या नहीं, क्योंकि दुनिया में अभी तक कोई भी ऐसा नहीं कर पाया था.
इस तकनीक को विकसित करने में कई तरह की चुनौतियां थी. इसके लिए हमने पीजीआई के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग में संपर्क किया. जहां पर हमने डॉक्टर जय शुक्ला के साथ मिलकर काम करना शुरू किया. इसके बाद हमने कई तरह के रिसर्च की. इसके बाद हम यह तकनीक विकसित करने में कामयाब हो गए.
उन्होंने कहा कि जो अन्य स्कैन तकनीकें इस्तेमाल की जा रही हैं वे हमें ट्यूमर के बारे में बता सकती हैं, लेकिन वो ये नहीं बता सकती कि ट्यूमर शरीर में कितना सक्रिय है. ये तकनीक ट्यूमर के बारे में तो बताएगी ही साथ ही यह भी बताएगी कि ट्यूमर कितना काम कर रहा है. ये सब जानकारी मिलने के बाद डॉक्टर सफलतापूर्वक मरीज का इलाज कर सकता है. उन्होंने बताया कि इस तकनीक को जल्द ही पेटेंट भी करवा लिया जाएगा.
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