चंडीगढ़ःविधानसभा चुनाव 2019 के लिए 21 अक्तूबर को वोट डाले जाएंगे. जिसके लिए राजनेता अब जनता के बीच दिन रात एक किए हुए हैं. ताकि चुनाव में जीत हासिल कर सकें. लेकिन अगर बात 2014 की करें तो उस वक्त हरियाणा में पहली बार बीजेपी ने सरकार बनाई थी. 2014 के परिणामों को देखें तो 4 सीटें ऐसी थी जिन पर जीत का अंतर 1 हजार वोटों से भी कम था. लेकिन अब उन सीटों पर क्या समीकरण हैं. कौन इन सीटों पर बढ़त बना रहा है.
राई विधानसभा के समीकरण समझिए
राई विधानसभा सीट पर 2014 में जीत का अंतर मात्र 3 वोट था. कांग्रेस के जयतीर्थ दहिया ने इनेलो के इंदरजीत सिंह दहिया को 3 वोटों से हराया था. उस वक्त कई बार गिनती हुई लेकिन जयतीर्थ दहिया जीत गए. इतना ही नहीं ये केस हाईकोर्ट तक गया. जयतीर्थ दहिया को यहां 36,703 वोट मिले थे जबकि इंदरजीत दहिया को 36,700 वोट. राई विधानसभा सीट पर 2009 में भी इन्ही दोनों नेताओं के बीच मुकाबला था और जयतीर्थ दहिया ने इंदरजीत दहिया को लगभग 5 हजार वोटों से हराया था. लेकिन 2014 में ये अंतर कम क्यों हुआ. इसका सबसे बड़ा कारण थी बीजेपी उम्मीदवार कृष्णा गहलावत जिन्हें लगभग 29 फीसदी वोट मिले जबकि 2009 में बीजेपी को मात्र 3 फीसदी वोट मिले थे. कृष्णा गहलावत ने कांग्रेस के ही ज्यादा वोट काटे थे क्योंकि वो कांग्रेस से ही बीजेपी में शामिल हुई थी और उनके बेटे नरेंद्र कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा के सगे साढू हैं. इस बार अभी कांग्रेस, बीजेपी और इनेलो तीनों ही पार्टियों ने टिकट फाइनल नहीं किए हैं लेकिन इस बार मुकाबला शायद बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहे. क्योंकि इनेलो की हालत अबकी बार पतली है और बीजेपी 75 पार का नारा लेकर चल रही है.
रतिया विधानसभा सीट इनेलो ने 453 वोटों से जीती थी
रतिया विधानसभा सीट पर इनेलो के रविंद्र बलियाना ने बीजेपी की सुनीता दुग्गल को 453 वोटों से हराया था. 1977 में बनी रतिया विधानसभा सीट पर ज्यादातर नेता दलबदल करके ही जीते हैं. इनेलो के रविंद्र बलियाना भी अब बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं. और सुनीता दुग्गल अब सांसद बन चुकी हैं तो ऐसे में उनकी टिकट की दावेदारी भी मजबूत हो जाती है. इसके अलावा इनेलो का वजूद तो हरियाणा में खतरे में ही है. इसलिए रविंद्र बलियाना ने सेफ साइट लेते हुए बीजेपी ज्वाइन की है. अब देखना होगा कि क्या बीजेपी उन्हें टिकट देगी. और कांग्रेस किसको मैदान में उतारेगी.