चंडीगढ़: भिवानी जिले के रोहनात गांव के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के सबसे बुजुर्ग वंशज आत्मा राम के लिए 15 अगस्त 2020 को 74वां स्वतंत्रता दिवस समारोह उनके जीवन का सबसे खास और यादगार अवसर होगा, जब वह अपने गांव में उपायुक्त की मौजूदगी में तिरंगा फहराएंगे.ये निर्णय आज यहां हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की अध्यक्षता में आयोजित रोहनात फ्रीडम ट्रस्ट के गवर्निंग ट्रस्टीज़ की पहली बैठक में लिया गया.
सीएम ने रोहनात गांव के लिए की कई घोषणाएं
इसके अलावा, उन्होंने ये भी निर्देश दिए कि कक्षा आठवीं की इतिहास की पुस्तक में शामिल अध्याय शीर्षक '1857 की क्रांति में रोहनात गांव का योगदान' को भी ग्राम सभाओं में बच्चों द्वारा व्यापक रूप से बताया जाना चाहिए. उन्होंने ये भी निर्देश दिए कि अधिकारी ट्रस्ट को आवंटित एक करोड़ रुपए की राशि से गांव के 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों का नि:शुल्क ईलाज करवाना सुनिश्चित करें.
मुख्यमंत्री ने आत्मा राम को स्वर्गीय बेदो देवी के स्थान पर नए गवर्निंग ट्रस्टी के रूप में नियुक्त करने की स्वीकृति भी प्रदान की. बैठक में मुख्यमंत्री ने लगभग 1 करोड़ रुपये की लागत से गांव में करवाए जाने वाले विकास कार्यों को भी मंजूरी प्रदान की, जिसमें गांव में स्थापित शहीद स्मारक में पुस्तकालय की स्थापना, ढाब जोहड़, बरगद के पेड़ और कुएं का सौंदर्यकरण, गांव के स्कूल एवं स्ट्रीट लाइट के लिए सौर परियोजना तथा गांव रोहनात से बोहल तक सम्पर्क सडक़ को पक्का करना शामिल है.
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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रोहनात गांव के वीर सपूतों द्वारा दिए गए अहम योगदान का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि रोहनात गांव हम सभी के लिए प्रेरणा है और गांव के इस महत्वपूर्ण योगदान के सम्मान में ही 21 सितम्बर, 2018 को रोहनात फ्रीडम ट्रस्ट की स्थापना की गई थी ताकि गांव का समुचित विकास सुनिश्चित किया जा सके. मुख्यमंत्री ने कहा कि 23 मार्च, 2018 को शहीदी दिवस के अवसर पर अमर बलिदान देने वाले रोहनात के ग्रामीणों के दर्द को समझते हुए पहली बार उन्होंने स्वयं गांव में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर रोहनात फ्रीडम ट्रस्ट बनाने की घोषणा की थी.
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि गांव के इतिहास पर बनी प्रेरणादायक फिल्म को रोहनात गांव के साथ-साथ आस-पास के गांवों और खण्डों में प्रदर्शित किया जाए. बैठक के दौरान भिवानी के उपायुक्त अजय कुमार ने मुख्यमंत्री की ओर से आत्मा राम के प्रति आभार प्रकट करते हुए उन्हें शॉल भेंट कर उनका सम्मानित किया.
गांव में बना ऐतिहासिक जोहड़. ये है रोहनात गांव की कहानी
रोहनात गांव में 23 मार्च 2018 से पहले कभी भी आजादी का जश्र नहीं मनाया गया था और न ही गांव में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था क्योंकि यहां के ग्रामीणों की मांग को पूरा करने के लिए किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया. इसी रोष स्वरूप यहां के लोगों ने आजादी का जश्र नहीं मनाया था. 23 मार्च वर्ष 2018 को पहली बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक बुजुर्ग के हाथों राष्ट्रीय ध्वज फहराकर यहां के लोगों को गुलामी के एहसास से आजाद करवाया.
क्यों नहीं फहराया था कभी राष्ट्रीय ध्वज ?
गौरतलब है कि गांव रोहनात आजादी के रणबांकुरों के नाम से जाना जाता हैं. यहां के लोगों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों से लोहा लेते हुए देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. गांव के वीर जांबाजों ने बहादुरशाह के आदेश पर 29 मई 1857 के दिन अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी. इस दिन ग्रामीणों ने जेलें तोड़कर कैदियों को आजाद करवाया. 12 अंग्रेजी अफसरों को हिसार और 11 को हांसी में मार गिराया. इससे बौखलाकर अंग्रेजी सेना ने गांव पुट्ठी के पास तोप लगाकर गांव के लोगों को बुरी तरह भून दिया. सैंकड़ों लोग जलकर मर गए, मगर फिर भी ग्रामीण लड़ते रहे.
अंग्रेजों के जुल्म के आगे यहां के ग्रामीण निडर होकर डटे रहे और उन्होंने अंग्रेजों के जुल्म को भी सहा. अंग्रेजों ने यहां के गांव को तोप से तबाह. अंग्रेजों ने इसके बाद भी अपने जुल्मों को जारी रखा. औरतों और बच्चों को कुएं में फेंक दिया. दर्जनों लोगों को सरे आम जोहड़ के पास पेड़ों पर फांसी के फंदे पर लटका दिया. ये कुएं और पेड़ आज भी अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों के जीते जागते सबूत हैं. इस गांव के लोगों पर अंग्रेजों के अत्याचार की सबसे बड़ी गवाह हांसी की एक सड़क है.
गांव में स्थित ऐतिहासिक कुआं. इस सड़क पर बुल्डोजर चलाकर इस गांव के अनेक क्रांतिकारियों को कुचला गया था. जिससे यह रक्त रंजित हो गई थी और इसका नाम लाल सड़क रखा गया था. गांव के लोगों की आंखें उस मंजर को याद कर छलछला उठती हैं. महिलाओं ने भी अंग्रेजों से आबरू बचाने के लिए गांव स्थित ऐतिहासिक कुएं में कूदकर जान दे दी थी. 14 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने इस गांव को बागी घोषित कर दिया व 13 नवंबर को पूरे गांव की नीलामी के आदेश दे दिए गए. 20 जुलाई 1858 को गांव की जमीन व मकानों तक को नीलाम कर दिया गया. इस जमीन को पास के पांच गांवों के 61 लोगों ने महज 8 हजार रुपये की बोली में खरीदा था.
गांव से जुड़ी पुरानी खबरों की प्रति. अंग्रेज सरकार ने फिर फरमान भी जारी कर दिया कि भविष्य में इस जमीन को रोहनात के लोगों को ना बेचा जाए. धीरे धीरे स्थिति सामान्य हो गई और यहां के लोगों ने अपने रिश्तेदारों के नाम कुछ एकड़ जमीन खरीदकर दोबारा गांव बसाया, मगर लोगों को ये मलाल रहा कि देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ खो देने के बावजूद उन्हें वो जमीन तक नहीं मिली. जिसके लिए वे लड़ाई लड़ते रहे. इसी बात से खफा होकर ग्रामीणों ने यहां कभी झंडा नहीं फहराया था.
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