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आज की प्रेरणा

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Published : Sep 22, 2021, 4:05 AM IST

Updated : Sep 22, 2021, 6:24 AM IST

यदि मनुष्य अपने स्वधर्म को सम्पन्न नहीं करता तो उसे कर्तव्य की उपेक्षा करने का पाप लगेगा और वह व्यक्ति अपना यश भी खो देगा. व्यक्ति को सुख-दुख, लाभ-हानि, विजय या पराजय का विचार किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए. निष्काम भाव से कर्म करने के प्रयास में न तो हानि होती है न ही ह्रास, अपितु इस पथ पर की गई अल्प प्रगति भी महान भय से रक्षा कर सकती है. विधि-विधान से किये हुए परधर्म से गुणरहित किन्तु स्वभाव से नियत अपना धर्म श्रेष्ठ है. जो सभी प्राणियों का उद्गम है और सर्वव्यापी है, उस भगवान की उपासना करके मनुष्य अपना कर्म करते हुए पूर्णता प्राप्त कर सकता है. जो व्यक्ति प्रकृति, जीव तथा प्रकृति के गुणों की अन्तःक्रिया से सम्बन्धित परमात्मा की विचारधारा को समझ लेता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति सुनिश्चित है, उसकी वर्तमान स्थिति चाहे जैसी हो. चर तथा अचर जो भी तुम्हें अस्तित्व में दिख रहा है, वह कर्मक्षेत्र तथा क्षेत्र के ज्ञाता का संयोग मात्र है. यदि मानव परमात्मा के लिए कर्म करने में असमर्थ हो तो, अपने कर्म के समस्त फलों को त्याग कर कर्म करने का तथा आत्म-स्थित होने का प्रयत्न करे. यदि मनुष्य कर्म फलों का त्याग तथा आत्म-स्थित होने में असमर्थ हो तो उसे ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करना चाहिए. सतोगुण मनुष्यों को सारे पाप कर्मों से मुक्त करने वाला है. जो लोग इस गुण में स्थित होते हैं, वे सुख तथा ज्ञान के भाव से बंध जाते हैं. ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है और ध्यान से भी श्रेष्ठ कर्मफलों का परित्याग क्योंकि ऐसे त्याग से मनुष्य को परम शांति मिलती है.
Last Updated : Sep 22, 2021, 6:24 AM IST

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