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#PositiveBharatPodcast : संंघर्षों की बुनियाद पर लिखी सफलता की कहानी, मिल्खा सिंह की दास्तान

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Published : Nov 20, 2021, 12:05 PM IST

आज के पॅाडकास्ट में कहानी एक ऐसी शख्सियत की, जो ना केवल एक महान खिलाड़ी रहा बल्कि अपने देशप्रेम और मानवीयता से एक बेहतरीन इंसान का पर्याय भी बना. आज के पॅाडकास्ट (Positive Bharat Podcast Milkha Singh) में हम सुनेंगे फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर पद्मश्री मिल्खा सिंह से जुड़े कुछ किस्से, जो शायद हमारी जीवन में एक बदलाव ला सके. 1960 में मिल्खा को पाकिस्तान की इंटरनेशनल (life of milkha singh ) एथलीट प्रतियोगिता में भाग लेने का न्योता मिला था. मिल्खा देश बंटवारे के गम को नहीं भुला पा रहे थे, इसलिए वह पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर वह पाकिस्तान जाने के लिए राजी हुए. पाकिस्तान में उस समय अब्दुल खालिक की तूती बोलती थी. वे वहां के सबसे तेज धावक (athlete commonwealth) थे. प्रतियोगिता के दौरान लगभग 60000 पाकिस्तानी फैन्स अब्दुल खालिक का जोश बढ़ा रहे थे, लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए थे. मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें 'फ्लाइंग सिख' का नाम दिया और इसके बाद से वह फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर हो गए. मिल्खा सिंह ने पूरी दुनिया में भारत का नाम बुलंदियों पर पहुंचाया, देश का प्रतिनिधित्व करते हुए मिल्खा सिंह ने कईं मंचों पर अपने अच्छे प्रदर्शन के बदौलत जीत हासिल की, लेकिन उनका नीजी जीवन काफी संघर्ष भरा और कष्टदायक था. मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को (Milkha singh birthday) गोविंदपुरा जो अब पाकिस्तान का हिस्सा में हुआ था. वह अपने अपने मां-बाप की कुल 15 संतानों में से एक थे, लेकिन भारत के विभाजन दौर में उन्होंने अपने माता-पिता और आठ भाई-बहन को खो दिया. विभाजन की त्रासदी का शिकार मिल्खा सिंह पाकिस्तान से ट्रेन की महिला बोगी में छिपकर दिल्ली पहुंच गए. मिल्खा ने देश के बंटवारे के बाद दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में अपने दुखदायी दिनों को जैसे-तैसे बस एक उम्मीद के सहारे काटा. इसके बाद उन्होंने हर हालात से जूझते हुए पहले सेना और फिर एथलेटिक्स की दुनिया में कदम रख खुद को साबित किया. आइये मिल्खा सिंह की जिंदगी के (unknown facts about milkha singh) कुछ ऐसे किस्से सुनें जो यह गवाही दें कि वह ना केवल एक चैंपियन थे, बल्कि बहुत नेक दिल इंसान भी थे. साल 1958 में कॉमनवेल्थ गेम में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल जीता था. ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (unknown facts about milkha singh) उन्हें कुछ इनाम देना चाहते थे, जब नेहरू ने उनसे पुछा कि वह इनाम में क्या चाहते हैं, तब मिल्खा ने उन्हें सिर्फ एक दिन का 'राष्ट्रीय अवकाश' मांगा था. वहीं साल 1999 में मिल्खा सिंह ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए बिक्रम सिंह के सात साल के बेटे को गोद भी लिया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि फ्लाइंग सिख ने अपने सभी मेडल और स्पोर्टिंग ट्रेजर देश के नाम कर दिए था. यह सभी आज पटियाला के स्पोर्ट्स म्यूजियम की रौनक बढ़ा रहे हैं.

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