हर साल 22 जुलाई को विश्व मस्तिष्क दिवस (वर्ल्ड ब्रेन डे) के रूप में मनाया जाता है. वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोलॉजी (डब्लूएफएन) ने इसकी शुरूआत 22 जुलाई 2014 को की थी और आज इसका 6 वां साल मनाया जा रहा है. डब्लूएफएन (WFN) के साथ अन्य कई संस्थाएं मिलकर मस्तिष्क स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं पर लोगों का ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कर रही है. इसके साथ ही मस्तिष्क स्वास्थ्य से संबंधित लोगों में जागरूकता फैला रही है.
हर साल डब्लूएफएन मस्तिष्क से संबंधित थीम रखता है, जिसके आधार पर जागरूकता फैलाई जाती है. साल 2020 की थीम पार्किंसंस रोग पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि 'पार्किंसंस रोग को समाप्त करने के लिए एक साथ कदम बढ़ाएं.' यह एक न्यूरोडीजेनरेटिव बीमारी है, जो दुनिया भर में हर उम्र के लगभग 7 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करती है. पार्किंसंस संचार और मस्तिष्क समारोह के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित कर सकता है और इससे पीड़ित लोगों के विशेष रूप से कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित होने की संभावना होती है.
पार्किंसंस रोग क्या है?
पार्किंसंस रोग को मूवमेंट डिसऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है. पार्किंसंस रोग पुरानी न्यूरोडीजेनरेटिव मस्तिष्क रोग है, जो एक प्रगतिशील विकार हैं. ये आम तौर पर बड़ी उम्र के लोगों में देखा जाता हैं, लेकिन यह कम उम्र में भी हो सकता है. यह रोग मस्तिष्क के कुछ भागों में विकार के कारण होता है. पार्किंसंस रोग एक घातक बीमारी नहीं है, लेकिन यह रोगी का जीवन बेहद मुश्किल बना देती है.
मस्तिष्क हमारे शरीर के अन्य हिस्सों में न्यूरोट्रांसमीटर रसायनों के रूप में संदेश भेजता है. हमारे शरीर में जब डोपामाइन नामक रसायन कम हो जाता है, तब पार्किंसंस रोग होता है, जो शरीर की सारी गतिविधियों को मुश्किल करता है.
पार्किंसंस रोग के शुरूआती दौर में शरीर का एक हिस्सा प्रभावित होता है, जिसमें कंपन, मांसपेशियों में कठोरता, असंतुलित शरीर आदि लक्षण दिखाई देते हैं. मानसिक रोगों के लक्षण जैसे अवसाद, तनाव, चिंता, अनिद्रा पाए जाते हैं.