लगातार बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान होकर बहुत से वैज्ञानिक तथा शोधकर्ता समय सारणी के आधार पर चलने वाली जीवनशैली के फायदों के बारे में ज्यादा जानने के लिए प्रयासरत हैं. हाल ही में एंडोक्राइन सोसाइटी की पत्रिका में प्रकाशित एक समीक्षा शोध के अनुसार समय प्रतिबंधित भोजन कई प्रकार की पुरानी पाचन (digestive) संबंधी बीमारियों को रोकने और प्रबंधित करने में मदद कर सकता है. इस शोध में शोधकर्ताओं ने निर्धारित समय अंतराल पर ग्रहण किए जाने वाले आहार का मानव तथा जानवर, दोनों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्धयन किया था.
इस शोध में समय प्रतिबंधित भोजन के शरीर की सर्कैडियन रिदम पर पड़ने वाले असर की जांच की गई थी. सर्कैडियन रिदम शरीर की एक प्रक्रिया है जिसके बाधित होने पर कई प्रकार के सामान्य और गंभीर रोग मनुष्य को प्रभावित कर सकते हैं. शोध में सामने आया कि समय प्रतिबंधित भोजन का शरीर के कई अंगों यहां तक की आंत माइक्रोबायोम ऊपर भी लाभकारी प्रभाव पड़ता है, इसके अतिरिक्त प्री डायबिटीज व सामान्य मधुमेहऔर ओबेसिटीजैसी समस्याओं सहित चय-पचय संबंधी रोग, कैंसर, प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्याओं, मनोदशा में बदलाव और यहां तक की प्रजनन संबंधी समस्याओं में भी समय प्रतिबंधित भोजन से लाभ मिलता है.
आदर्श भोजन
पूरी दुनिया में भोजन को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बांटा जाता है नाश्ता, दोपहर का खाना और रात का खाना. आम मान्यता है की सुबह का नाश्ता कैलोरी और पोषण से भरपूर होना चाहिए जिससे हमारा पूरा दिन उर्जा से भरपूर रहे. वहीं दोपहर का खाना सुबह के मुकाबले थोड़ा हल्का हो लेकिन उसमें सभी तरह का आहार शामिल होना चाहिए, वही रात का खाना हल्का होना चाहिए, जिससे उससे पचने में समस्या ना हो. कई बार आयु या स्वास्थ्य के चलते लोग कई लोग इन तीनों प्रकार के खानों के बीच भी छोटे-छोटे मील (snacks) ग्रहण करते रहते हैं.
क्या कहता है आयुर्वेद?
भारत के प्राचीन चिकित्सा पंथ आयुर्वेद में भी आहार नियम को विशेष मान्यता दी जाती है. आयुर्वेद में भोजन को लेकर दो तरह की विचारधाराएं प्रचलित है. हैदराबाद के वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य तथा पीएचडी डॉ. पी वी रंगनायकुलु बताते हैं कि आयुर्वेद में भोजन करने के नियम को लेकर दो तरह की विचार धाराओं को मान्यता दी जाती है. पहली विचारधारा में समय नियंत्रित भोजन की बात कही जाती है.
डॉ. रंगनायकुलु बताते हैं कि आयुर्वेद में दिन के प्रथम भोजन यानी नाश्ते को फलाहार या अल्पाहार की संज्ञा दी जाती है. ऐसा माना जाता है कि नाश्ते के लिए सुबह 9:00 तक फलों का आहार लिया जाए, जिसके उपरांत 11:00 से 12:00 बजे के आसपास सामान्य भोजन किया जाए तथा शाम 6:00 बजे तक रात्रि का भोजन कर लिया जाए. इससे भोजन के पाचन चक्र पर भार नहीं पड़ता है.
आमतौर पर माना जाता है कि दिन का पहला आहार सबसे भारी होना चाहिए, उसके बाद दोपहर का भोजन सुबह के मुकाबले थोड़ा हल्का और रात का भोजन काफी हल्का होना चाहिए, लेकिन आयुर्वेद में माना जाता है कि सुबह का नाश्ता पेट के लिए हल्का होना चाहिए जिससे पाचन क्रिया पर भार ना पड़े और वह पूरे दिन सही तरीके से संचालित हो सके, इसके उपरांत दोपहर का भोजन अपेक्षाकृत भारी हो सकता है, लेकिन रात का भोजन हमेशा हल्का होना चाहिए.
डॉ. रंगनायकुलु बताते हैं कि बौद्ध धर्म सहित कई अन्य धर्मों और पंथों में दिन में दो समय भोजन करने का नियम प्रचलित है. जिसमें सुबह का नाश्ता तथा दोपहर का खाना एक बार में जो कि 10 से 12:00 के बीच में ग्रहण किया जाता है और रात का खाना जो कि 6:00 बजे तक ग्रहण कर लिया जाता है. आयुर्वेद भी इसी प्रकार की आहार शैली का समर्थन करता है. वे बताते हैं कि पाचन स्वास्थ्यके लिए यह भोजन नियम सबसे अच्छा होता है तथा इस प्रकार की आहार श्रेणी के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक अच्छे प्रभाव नजर आते हैं.
वे बताते हैं कि हमारा शरीर वात, पित्त और कफ प्रकृति के आधार पर प्रतिक्रिया देता है. हमारे शरीर में बनने वाले सभी गैस्ट्रिक एंजाइम (gastric enzyme), भोजन से पोषण का संग्रहण तथा पाचन क्रिया व उससे जुड़े सभी कार्य पित्त द्वारा संचालित माने जाते हैं. पित्त दोष को अग्नि से संचालित माना जाता है इसीलिए जिस समय सूर्य प्रबल होता है उस समय हमारे शरीर में पित्त की स्थिति भी प्रबल होती है. यह स्थिति 12:00 बजे के आसपास मानी जाती है इसलिए भोजन के लिए इस समय को आदर्श माना जाता है.
डॉ. पी वी रंगनायकुलु बताते हैं कि समय के साथ-साथ मौसम भी हमारे भोजन को काफी प्रभावित करता है. क्योंकि सर्दी, गर्मी, बरसात को वात, पित्त और कफ को प्रभावित करते हैं इसलिए मौसम अनुसार भोजन के समय के साथ-साथ भोजन की प्रकृति का चयन करना भी बहुत जरूरी है. उदाहरण के लिए सर्दियों के समय में हमारा पाचन सबसे प्रबल होता है इस मौसम में हम जो भी खाते हैं वह पच जाता है, लेकिन गर्मियों और बरसात में ऐसा नहीं होता है. इसलिए सर्दियों में हम गरिष्ठ भोजन की मात्रा अपने भोजन में बढ़ा सकते हैं लेकिन गर्मियों और बरसात के मौसम में हमारा भोजन हल्का ही होना चाहिए.
डॉ. रंगनायकुलु बताते हैं कि आयुर्वेद की दूसरी विचारधारा के अनुसार चूंकि शरीर को पूरे दिन ऊर्जा की जरूरत होती है इसलिए पूरे दिन में कुछ-कुछ समय के उपरांत थोड़ा-थोड़ा खाने की बात भी कही जाती है. इस प्रकार का आहार नियम दिनभर शरीर में उर्जा के संचरण तथा संचालन में मददगार हो सकता है. लेकिन इस प्रक्रिया में यह ध्यान रखना जरूरी है कि हम किस प्रकार का आहार कितने अंतराल पर ग्रहण कर रहे हैं. क्योंकि यदि हमारा भोजन गरिष्ठ होगा तो उसे पचने में सामान्य भोजन की अपेक्षा ज्यादा समय लगेगा. ऐसे में यदि पहला भोजन पचे बिना हम दोबारा भोजन ग्रहण करते हैं तो हमारे पाचन तंत्र पर दबाव पड़ेगा जो कई प्रकार की समस्याओं का कारण भी बन सकता है.
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