बच्चा चाहे किसी भी उम्र का हो उसे बड़ों के ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि इस आयु तथा अवस्था में उसका शरीर विभिन्न प्रकार की विकास प्रक्रियाओं से गुजर रहा होता है. बच्चे के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास के लिए पोषक भोजन के अलावा व्यायाम, खेलकुद और सामाजिक मेलजोल बहुत जरूरी होता है. लेकिन वर्ष 2020 में कोरोना महामारी का बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा सामाजिक जीवन पर काफी असर पड़ाता है. महामारी के इस दौर में जहां कोरोना संक्रमण के डर ने माता -पिता को डराया, वहीं लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुई दिनचर्या और उसके कारण बच्चों में बढी दृष्टिदोष और मोटापे के अलावा कई गंभीर शारीरिक और मानसिक अस्वस्थताओं ने माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरे खींच दी. वर्ष 2020 में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर कौन-कौन सी समस्याओं ने डराया और किन मुद्दों ने लोगों का ध्यान अपनी और खींचा, पेश है ईटीवी भारत सुखीभवा की यह रिपोर्ट.
कोविड-19
शुरुआत में जब तक कोविड 19 के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. लोगों मान रहे थे की कोरोना का असर बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा पड़ सकता है. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और इस संक्रमण के बारे में लोगों में ज्यादा जानकारी सामने आने लगी, तब यह तथ्य सामने आया की बच्चों पर इस संक्रमण का असर कम होता है. हालांकि ऐसा नहीं है की बच्चों में कोविड-19 का असर हुआ ही नहीं. लेकिन उनका प्रत्तिशत दुसरीं उम्र के लोगों के अनुपात में कम रहा.
कोविड 19 का बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य से ज्यादा उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है. कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हो गए, बच्चों का घर से बाहर निकालना बंद हो गया, दोस्तों से मिलना-बातें करना बंद हो गया. ऐसी अवस्था में उनमे आलस, बैचेनी, चिड़चिड़ापन तथा जैसी मानसिक अस्वस्थताओं के लक्षण नजर आने लगे.
सम्पूर्ण लॉकडाउन के बाद जब पढ़ाई शुरू भी हुई तो ऑनलाइन व्यवस्था के तहत जहां बच्चों को ज्यादातर समय एक स्थान पर कंप्यूटर के सामने बैठना पड़ा. इस व्यवस्था ने भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के साथ उनकी आंखों के स्वास्थ्य पर काफी असर डाला है. कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा की कोरोना की इस समयावधि ने बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत ही नकारात्मक असर डाला है.
मोटापा
महामारी के चलते सामाजिक जीवन और पढ़ाई से जुड़ी व्यवस्थाओं के बदलने से एक और समस्या ने बच्चों में प्रभावित किया वह है, ओबेसिटी यानि मोटापा. लॉकडाउन के कारण बच्चों की दिनचर्या पर काफी असर पड़ा है. सामान्यतः जहां बच्चें सुबह उठते ही नहा धो कर स्कूल के लिए जाते थे और शाम को दोस्तों के साथ खेलते कूदते थे, लेकिन महामारी के दौर में बच्चें चार दीवारों में कैद होकर रह गए. जिसका नतीजा यह रहा की उनकी दिनचर्या अनुशासनहीन हो गई. देर से सोना और देर से सोकर उठना, खाने का समय न होना, किसी भी प्रकार का व्यायाम या कोई भी ऐसी शारीरिक गतिविधि का ना होना उस पर लंबे समय पर कंप्यूटर या मोबाइल के सामने बैठ कर पढ़ना और खेलना उनकी दिनचर्या बन गई. ऐसे में बड़ी संख्या में बच्चों में मोटापा बढ़ने की समस्या संज्ञान में आई. चूंकि मोटापा कई बीमारियों के लिए ट्रिगर का काम करता है इसलिए बच्चों में नींद न आने, आंखों या सिर में दर्द होने, तनाव, चिड़चिड़ापन और बगैर कोई भी काम किया थकान जैसे समस्याए नजर आने लगी. कुछ बच्चों में मोटापे कारण मधुमेह, रक्तचाप और हृदय रोग जैसे गंभीर रोगों के मामले भी देखने सुनने में आए.
नवजात का स्वास्थ्य
हालांकि नवजात बच्चों के स्वास्थ्य पर कोरोना जैसे संक्रमण के ज्यादा प्रभाव की बात सामने नहीं आई. लेकिन महामारी के इस दौर में नवजात बच्चों को किस तरह से सुरक्षित रखा जा सकता है, इस बारे में लोगों ने विशेषकर नई माओं ने काफी ध्यान दिया. जिसके लिए परंपरागत तरीकों के साथ चिकित्सीय सलाह का भी सहारा लिया गया.