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अपना दुःख किसी से नहीं बांटना चाहते थे जेटली- रजनी अब्बी

एकीकृत नगर निगम की अंतिम मेयर और भाजपा की वरिष्ठ नेता रजनी अब्बी जो अरुण जेटली के काफी करीब थीं. उन्होंने कहा कि अपने राजनीतिक जीवन में जो भी फैसला अभी तक लेती आई थी, वह अरुण जेटली के सलाह मशविरा से ही ली थी.

अरुण जेटली का निधन, etv bharat

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Published : Aug 25, 2019, 7:39 PM IST

नई दिल्ली: भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली का पार्थिव शरीर जब दिल्ली के निगमबोध घाट पर पहुंचा, तो वहां भी अंतिम दर्शन करने के लिए लंबी कतारें लग गई. लोग अपने शब्दों के जरिए अपने प्रिय नेता को श्रद्धांजलि देते हुए दिखाई दिए.

भाजपा की वरिष्ठ नेता रजनी अब्बी ने ईटीवी भारत से की बात


'समस्या का समाधान करने की कोशिश करते थे'
एकीकृत नगर निगम की अंतिम मेयर और भाजपा की वरिष्ठ नेता रजनी अब्बी जो अरुण जेटली के काफी करीब थीं. अपने राजनीतिक जीवन में जो भी फैसला अभी तक लेती आई थीं, वह अरुण जेटली के सलाह मशविरा से ही लीं थी. जेटली जी के निधन पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि जेटली जी ऐसे शख्स थे, हमेशा दूसरों का दुःख दूर करने के लिए तत्पर रहते थे. अपना दुःख किसी से बांटना नहीं चाहते थे.


रजनी अब्बी बोलती हैं कि अरुण जेटली इतनी बीमारियों से जूझ रहे थे, लेकिन अपना दुख किसी से नहीं बांटते थे. शायद वह मानते थे कि दुख बांटने से सामने वाला दुखी ना हो जाए.
इसलिए जब भी हमलोग जेटली जी से मिलने जाते थे और अपनी बात कहने से पहले उनका हाल चाल लेते थे, तो सिर्फ 2-3 सेकंड में उस बारे में कुछ बोल आने का कारण पूछ कर हम लोगों की समस्या का समाधान करने की कोशिश करते थे.


'चुनावों पर बारीकी से नजर रखते थे'
राष्ट्रीय राजनीति में अत्यधिक सक्रिय होने के बावजूद दिल्ली में अरुण जेटली की खास दिलचस्पी का ही नतीजा था कि वे नगर निगम चुनाव हो या विधानसभा चुनाव सब पर बड़ी बारीकी से नजर रखते थे. उन्हें अगर लगता था कि पार्टी का कोई सक्रिय कार्यकर्ता किसी वार्ड या विधानसभा से चुनाव लड़कर सीट निकाल सकता है तो वह सदैव चुनाव समिति की बैठक में उसकी पैरवी करते थे.


शायद यही वजह है कि अरुण जेटली को दिल्ली भाजपा के नेता टिकट पाने के लिए एक गेटवे के तौर पर भी देखते थे. जहां उन्हें लगता था चुनाव लड़ने के लिए अगर कोई टिकट दिलाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं, तो अरुण जेटली हैं. सक्रिय कर्मठ कार्यकर्ता एक बार जरूर अपनी बात अरुण जेटली तक पहुंचा देते थे. अब ऐसे वक्ता, नेता, अधिवक्ता, प्रवक्ता नहीं रहे इनसे वाकई भाजपा में और देश की राजनीति में जेटली युग का अंत कहा जा सकता है.

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