नई दिल्ली:राजधानी में एमसीडी चुनाव की तारीख की घोषणा के बाद सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार हैं. नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के साथ प्रत्याशियों के नाम भी सामने आ रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच पार्टियों द्वारा दी जाने वाली टोपियां अचानक चर्चा में आ गई हैं, क्योंकि ये स्वदेशी कम और विदेशी ज्यादा हैं. जी हां, आपने सही सुना. राजनीतिक रंग में रंगी जो टोपियां पहले खादी से बनाई जाती थीं, उनकी जगह चाइनीज कपड़े (caps made with chinese material in elections) ने ले ली है. इस बारे में जब राजनीतिक दलों के लिए प्रचार सामग्री बनाने वालों से बातचीत की गई तो पता चला कि चुनाव में करीब 90 प्रतिशत टोपियां इसी कपड़े से बनाई जा रही हैं. यही नहीं, इसकी मशीन भी चीन से मंगाई गई है. लेकिन ये बदलाव कैसे आया, और इसके पीछे का मुख्य कारण क्या है, आइए जानते हैं.
दरअसल, पहले चुनावों में राजनीतिक दलों के नेता, कार्यकर्ता खादी के कपड़े से बनी हुई टोपी पहनते थे. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बदला, महंगाई बढ़ी और खादी के दाम भी बढ़े, राजनीतिक दल खादी का साथ छोड़ उस विकल्प की ओर बढ़े, जो टोपी बनाने के लिए मुफीद होने के साथ ही उससे काफी सस्ता भी था. इसके बारे में इस उद्योग से जुड़े व्यापारी अमान ने बताया कि वर्तमान में जिस कपड़े से राजनीतिक दलों के लिए टोपियां बनाई जा रही हैं, उस कपड़े का नाम है ना-नुमन. यह कपड़ा काफी हल्का होता है और इससे बनी टोपियां काफी सस्ती पड़ती हैं.
अमान ने आगे बताया कि इस मैटीरियल को प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर देखा जाता है और इससे कैरी बैग आदि भी बनाए जाते हैं. पहले इस कपड़े के मैटीरियल को चीन में बनाया जाता था. एक अनुमान के मुताबिक, दस साल पहले तक भारत में इस कपड़े के मैटीरियल की 100 प्रतिशत सप्लाई चीन से ही होती थी. लेकिन गलवान घाटी में चीन द्वारा किए गए दुस्साहस के बाद भारत में "बॉयकॉट चाइना" मुहिम चली और लोगों ने बड़े स्तर पर चीनी सामान का बहिष्कार किया. इसमें इस कपड़े का मैटीरियल भी शामिल था. इसे देखते हुए भारतीय कंपनियों ने भी ना-नुमन कपड़े की मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी. लेकिन भारी मांग के चलते भारत में अब भी करीब 50 प्रतिशत ना-नुमान कपड़ा चीन से आयात किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि चुनाव आने से ना-नुमन कपड़े की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ गई है. इसका उपयोग अलग-अलग प्रकार की टोपी बनाने के साथ झंडे और पटके बनाने में भी होता है. इस मैटीरियल के काफी सस्ता होने की वजह से मार्केट में इसकी डिमांड ज्यादा है. पंजाब चुनाव के समय इस कपड़े से बने टोपी, झंडे और पटके की डिमांड थी तो अब एमसीडी, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव आने पर एक बार फिर इनकी मांग आसमान पर है. इसके चलते दुकानदारों और होलसेल कारोबारियों को करोड़ों रुपये के ऑर्डर मिले हैं.