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कुतुब मीनार मस्जिद विवाद की पूरी कहानी, दावों से लेकर इतिहास तक पर नजर

कुतुब मीनार में बनी कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद पर दावा करने वाली याचिका को दिल्ली की साकेत कोर्ट ने खारिज कर दिया है. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों इस पर विवाद खड़ा हुआ था? किन वकीलों ने ये याचिका कोर्ट में दाखिल की थी? पढ़िए पूरी स्टोरी.

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Published : Dec 9, 2020, 9:54 PM IST

Updated : Nov 29, 2021, 6:53 PM IST

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कुतुब मीनार मस्जिद विवाद: क्या है दावा-क्या है असलियत? जानिए पूरी कहानी

नई दिल्लीःसाकेत कोर्ट में एक याचिका दायर कर कुतुब मीनार स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद पर सवाल खड़े किए गए थे. इस याचिका में दावा किया गया था कि 27 हिंदू एवं जैन मंदिरों को तोड़कर इस मस्जिद को बनाया गया है. कोर्ट ने सोमवार को इस याचिका को खारिज कर दिया है.

जानकारी के अनुसार, इस याचिका में कहा गया था कि यहां पर दोबारा से 27 मंदिरों की स्थापना की जानी चाहिए और इसके लिए सरकार को एक ट्रस्ट बनाना चाहिए. इसके साथ ही इस याचिका में यह दावा किया गया था कि यहां बनी मस्जिद में साफ तौर पर भगवान एवं संख- त्रिशूल जैसे निशान देखे जा सकते हैं, जो बताते हैं कि यहां पर पहले मंदिर थे.

याचिका दायर करने वाले वकील हरिशंकर जैन का क्या कहना है ?

गाजियाबाद के अहिंसा खंड में रहने वाले वकील हरिशंकर जैन ने दिल्ली के साकेत कोर्ट में यह याचिका दायर की थी. ईटीवी भारत से बातचीत में सीनियर वकील हरिशंकर जैन ने बताया कि मोहम्मद गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. हरिशंकर जैन ने कहा कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 हिंदू-जैन मंदिर और नक्षत्रशाला को तोड़कर एक तथाकथित मस्जिद बनाई जिसका नाम रखा कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद.

क्या है मांग

हरिशंकर ने बताया कि मस्जिद को इस्लाम की ताकत को दर्शाने के लिए बनाया गया था और आज भी वहां हिंदू देवी-देवता के चित्र देखने को मिलते हैं. हिंदुओं में डर बैठाने के लिए मस्जिद का निर्माण किया गया. उन्होंने कहा कि कुतुबमीनार में लगे बोर्ड पर भी साफ लिखा है कि मस्जिद 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर, मंदिरों के मलबे से बनाई गई है. उन्होंने कहा संविधान के तहत हमें अधिकार है, हम कोर्ट जाएं और अपनी बात रखें.

मस्जिद का इतिहास

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वहीं कुव्वत उल इस्लाम परिसर को लेकर किए गए दावों को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के पूर्व निदेशक केके मोहम्मद ने सच बताया है. उन्होंने भी यह बात मानी कि कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद हिंदू और जैन मंदिर को तोड़कर बनाया गया है. साथ ही कहा कि इसके लिए कई दस्तावेज भी प्रमाण के तौर पर मौजूद हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि आज के समय में यह एक संरक्षित ऐतिहासिक इमारत है, जिसके संरक्षण का कार्यभार आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया पर है. उन्होंने स्पष्ट किया कि संरक्षित इमारत होने के कारण यहां पर ना ही पूजा-पाठ किया जा सकता है और ना ही नमाज अदा की जा सकती है.

दावों की सच्चाई

उन्होंने कहा कि है बेशक मस्जिद का परिसर पहले मंदिर और जैन मंदिरों का परिसर रहा था, लेकिन 1914 में जब आरक्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इसे संरक्षण में लिया. उस समय ना वहां नमाज पढ़ी जाती थी और ना ही पूजा-पाठ होता था.

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उन्होंने कहा यह पहली बार नहीं जब इस परिसर में धार्मिक अनुष्ठान की मांग की जा रही है. इसके पहले भी यहां पर हिंदू समुदाय द्वारा पूजा पाठ करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया था. साथ ही मुस्लिम समुदाय ने भी यहां नमाज पढ़ने के लिए कोशिश की थी. यहां तक कि चार मस्जिदों पर कब्जा भी कर लिया था, जिसको लेकर पुलिस बल की सहायता लेकर उन्हें हटाना पड़ा था. उन्होंने कहा कि अब कोर्ट के आदेश पर निर्भर करता है.

एएसआई के पूर्व निदेशक ने दावों को सच बताया

बता दें कि कुतुब मीनार का निर्माण 12वीं और 13वीं शताब्दी में अलग-अलग शासकों द्वारा किया गया था. सबसे पहले इसकी नींव, भूतल और पहली मंजिल बनाने का काम कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा करवाया गया था. इसके बाद उसके पोते इल्तमस ने इसके ऊपर की मंजिलें बनाई. वहीं अंतिम मंजिल तेरहवीं शताब्दी में फिरोजशाह तुगलक द्वारा बनाई गई.

Last Updated : Nov 29, 2021, 6:53 PM IST

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