नई दिल्ली:केंद्र सरकार ने सोमवार को लोकसभा में संशोधित किया हुआ GNSTD एक्ट पेश किया. इस बिल के पेश होने के बाद दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच एक बार फिर तकरार तेज हो गई है.
सरकार की ओर से पेश किया गया बिल दिल्ली के उपराज्यपाल को महत्वपूर्ण शक्तियां देता है. नए बिल के मुताबिक, अब दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा. विधानसभा से पारित किसी भी विधेयक को वही मंजूरी देगा. इसके साथ ही बिल में कहा गया है कि दिल्ली सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले उपराज्यपाल से मशविरा लेना होगा. साथ ही अब दिल्ली सरकार अपनी ओर से कोई भी कानून खुद नहीं बना सकेगी.
ये भी पढ़ें-अधिकार बचाने की लड़ाई: कल जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेगी आम आदमी पार्टी
इस बिल के पेश होते ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर बीजेपी पर करारा प्रहार किया. उन्होंने लिखा दिल्ली के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 8 सीटें और एमसीडी उपचुनाव में एक भी सीट न पाकर रिजेक्ट हुई बीजेपी ने अब पर्दे के पीछे से सत्ता हथियाने की तैयारी कर ली है. इसी के तहत उसने आज लोकसभा में बिल पेश किया है. यह सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले के खिलाफ है. हम बीजेपी के असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कदम का विरोध करते हैं.
ये भी पढ़ें-संसद में संशोधन बिल का नारेबाजी के साथ विरोध, प्लेकार्ड लेकर पहुंचे AAP सांसद
वहीं दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसे तानाशाही से भरा हुआ संशोधन बताया. सिसोदिया ने कहा इस कानून ने दिल्ली सरकार का मतलब ही बदल दिया है. अब दिल्ली में मुख्यमंत्री या मंत्री का कोई मतलब नहीं रह गया है. ये संशोधन तानाशाही से भरा हुआ संशोधन है.
वहीं मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जब दिल्ली में सरकार का मतलब ही लेफ्टिनेंट गवर्नर हो गया तो चुनाव कराकर लोकतांत्रिक होने का दिखावा ही क्यों करते हो.
ये भी पढ़ें-दिल्ली-जीएनसीटी एक्ट में बदलाव संविधान और लोकतंत्र का हनन: मनीष सिसोदिया
वहीं दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने इस मामले पर कहा कि दिल्ली सरकार के पास अभी भी प्रशासन और विकास के 75 फीसदी से अधिक कार्य रहेंगे. बेहतर होगा कि सत्ता संघर्ष पर ध्यान देने की बजाय केजरीवाल सरकार दिल्ली के सुशासन और विकास पर ध्यान दे.
दरअसल केंद्र सरकार ये बिल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लेकर आई है. 4 जुलाई, 2018 को शीर्ष अदालत ने अपने एक फैसले में कहा था कि दिल्ली सरकार के दैनिक कामकाज में उपराज्यपाल की ओर से दखल नहीं दिया जा सकता. वह मंत्री परिषद के सलाह के रूप में अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ये भी निर्देश दिया था कि अगर सरकार और उपराज्यपाल के बीच कार्य विभाजन कर दिए जाए तो ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी.