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नवरात्र के तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा, जानिए विधि विधान

नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. माता चंद्रघंटा मां दुर्गा का तृतीय अवतार है. माता चंद्रघंटा के रूप के बारे में झंडेवालान मंदिर के पुजारी अंबिका प्रसाद पंत ने बताया कि जिनके घंट अर्थात गले में चंद्रमा स्थित हो उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है.

मां चंद्रघंटा ETV BHARAT

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Published : Oct 1, 2019, 8:25 AM IST

नई दिल्ली: माता चंद्रघंटा मां दुर्गा का तृतीय अवतार है. जिनकी पूजा आराधना नवरात्रि के तीसरे दिन करने का विधान होता है. माता का ये रूप सभी प्रकार की अनोखी वस्तुओं को देने वाला तथा कई प्रकार की विचित्र दिव्य ध्वनियों को प्रसारित और नियंत्रित करने वाला होता है.

नवरात्र के तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा

मान्यता है कि जब असुरों का अत्याचार काफी बढ़ गया तो देवताओं ने उनके संहार के लिए मां की आराधना की. जिसके बाद मां ने चंद्रघंटा के रूप में असुरों का संहार किया.

माता चंद्रघंटा का रूप
माता चंद्रघंटा के रूप के बारे में झंडेवालान मंदिर के पुजारी अंबिका प्रसाद पंत ने बताया कि जिनकी घंटा में आह्लादकारी चंद्रमा स्थित हों. यानी जिनके घंट अर्थात गले में चंद्रमा स्थित हो उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. जिनके माथे पर अर्धचंद्र शोभित हो रहा है. जिनकी कांति सुवर्ण रंग की है. ऐसी दुर्गा के प्रतिमा को चंद्रघंटा के नाम से ख्याति प्राप्त हुई है.

यह दैत्यों का संहार भयानक घंटे के नाद से करती है. माता दस भुजाधारी हैं. जिनके दाहिने हाथ में ऊपर से पद्मा, वाण, धनुष, माला आदि शोभित हो रहे हैं. वहीं बाएं हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार, कमंडल तथा युद्ध की मुद्रा शोभित हो रही है.

पूजन विधि
मां चंद्रघंटा की पूजा शास्त्रीय विधान को अपनाते हुए करना चाहिए. शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए. इस दिन माता की पूजा विविध प्रकार के सुगंधित पुष्पों तथा विभिन्न प्रकार के नैवैधों और इत्र से करने का विधान होता है.

जिससे साधक को वांछित फलों की प्राप्ति होती है. शरीर में उत्पन्न पीड़ा का अंत होता है. पूजा और क्षमा प्रार्थना के बाद मां को प्रणाम करते हुए पूजा और आराधना को माता को अर्पण कर देना चाहिए.

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