नई दिल्ली:दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में आखिरकार तीन साल के बाद छात्र संघ के चुनाव हो रहे हैं. एबीवीपी, एनएसयूआई, आइसा और एसएफआई ने अपने उम्मीदवारों का नामांकन कराने के साथ उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी कर दी है. साल 2019 में डूसू चुनाव में तीन सीट जीतनेवाली एबीवीपी का दावा है कि वे हर साल एक साल का कामकाज लेकर चुनाव में जाते थे, तो उन्हें छात्रों का भरपूर समर्थन मिलता था. इस बार वे चार साल का कामकाज लेकर छात्रों के बीच में जाएंगे. उन्हें उम्मीद है कि इस डूसू चुनाव में एबीवीपी चार सीट जीतकर क्लीन स्वीप करेगी. एबीवीपी के इन दावों और चुनाव की रणनीति पर एबीवीपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार तुषार डेढ़ा से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश...
सवाल: इस डूसू चुनाव में एबीवीपी की क्या रणनीति है?
जवाब: इस चुनाव में भी हमारे कई मुद्दे हैं, जैसे कि कोरोना महामारी के बीच दिल्ली विश्वविद्यालय बंद रहा. उस समय कई कॉलेज के इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत खराब थे. हंसराज कॉलेज में ही कुछ दिनों पहले एक पंखा गिरा. लक्ष्मीबाई कॉलेज में भी कुछ इस तरह की समस्या आई थी. यहां भी पंखा गिर गया था. इस तरह हमारा मुख्य मुद्दा यह है कि डीयू के कॉलेज में जो खराब इंफ्रास्ट्रक्चर है, इसे दुरुस्त करवाएंगे. मैं खुद दिल्ली देहात से आता हूं, कई बार बस में भीड़ और बस की उपलब्धता नहीं होने से छात्र समय पर कॉलेज नहीं आ पाते हैं. इस बार हम डीयू के लिए स्पेशल बसें चलवाएंगे. तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि हम डीयू के छात्रों के लिए मेट्रो में रियायती पास दिलवाएंगे, क्योंकि भारी संख्या में छात्र मेट्रो के माध्यम से कॉलेज पहुंचते हैं. छात्र को रोजाना 100 से 150 रूपए खर्च करना पड़ता है.
सवाल: इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो डीयू 100 साल का हो गया है, लेकिन हॉस्टल में सीट करीब 5 हजार. इस समस्या को कैसे दूर करेंगे?
जवाब:हमारा जो चुनाव के लिए मैनिफेस्टो है. इसमें हमने हॉस्टल की सीट बढ़ाने का काम भी किया है. हॉस्टल बनाने का काम किया जा रहा है. हम दिल्ली सरकार से भी मांग करेंगे कि नए हॉस्टल के निर्माण कार्य उसकी लागत अनुसार, समय पर पूरा किया जाए. साथ ही हम हॉस्टल की सीट और नए हॉस्टल के निर्माण के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रशासन से भी मांग करेंगे.
सवाल: एनएसयूआई का दावा है कि उन्होंने महामारी में छात्रों के लिए काम किया.
जवाब: देखिए, मेरा मानना है कि किसी की मदद करो तो उसका बखान मत करो. मेरा कहना है कि नेकी कर दरिया में डाल. आज चुनाव के वक्त जो यह एनएसयूआई दावा कर रही है कि उन्होंने महामारी के दौरान छात्रों की मदद की. आप यूनिवर्सिटी जाकर एक-एक छात्र से पूछ लीजिए, जब महामारी के बीच विश्वविद्यालय बंद था. छात्र के पास खाने के लिए भोजन नहीं था. छात्र महामारी को लेकर डरे हुए थे. एनएसयूआई और आइसा, एसएफआई जैसे संगठन कहां थे. आपको डीयू का एक-एक छात्र जानकारी देगा कि महामारी के दौरान एबीवीपी के अलावा किसी ने उनकी मदद नहीं की है?