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जेएनयू: ADGP प्रक्रिया से हो रहे एडमिशन के खिलाफ ABVP के छात्रों का विरोध प्रदर्शन

जेएनयू कैंपस में एडीजीपी के विरोध मे छात्रों ने प्रदर्शन किया और गंगा ढाबा से साबरमती तक पैदल मार्च निकाला. इनका आरोप है कि फैकल्टी में बैठे कई ऐसे सदस्य हैं जो नए छात्रों को जेआरएफ के माध्यम से ले रहे हैं.

ABVP के छात्रों का विरोध प्रदर्शन
ABVP के छात्रों का विरोध प्रदर्शन

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Published : Mar 22, 2021, 3:13 AM IST

नई दिल्ली: जेएनयू कैंपस में एडीजीपी के विरोध मे छात्रों ने प्रदर्शन किया और गंगा ढाबा से साबरमती तक पैदल मार्च निकाला. इनका आरोप है कि फैकल्टी में बैठे कई ऐसे सदस्य हैं जो नए छात्रों को जेआरएफ के माध्यम से ले रहे हैं. जेआरएफ यानी जूनियर रिसर्च फैलोशिप इसके अंतर्गत जो छात्र आते हैं उन्हें एंट्रेंस एग्जाम नहीं देना पड़ता है.

ABVP के छात्रों का विरोध प्रदर्शन

उन्हें सिर्फ इंटरव्यू द्वारा चुना जा रहा है. एबीवीपी के छात्रों का आरोप है कि लेफ्ट विचारधारा के फैकेल्टी मेंबर तमाम ऐसे स्कूल और सब्जेक्ट में लेफ्ट विचारधारा के छात्रों को ही एडमिशन दे रहे हैं. बीते सालों में कई स्कूल शत प्रतिशत जेआरएफ द्वारा छात्रों को एडमिशन दिया गया है. इनका कहना है ऐसा करने से पिछड़े या अति पिछड़े या जो एडमिशन के लायक है, जिनके एंट्रेंस एग्जाम में अच्छे नंबर हैं उन्हें एडमिशन नहीं दिया जा रहा है.

90 फीसदी छात्रों को मिले प्रवेश परीक्षा से एडमिशन

जेएनयू के छात्रों ने कहा कि हम लोग इस प्रदर्शन को लगातार बढ़ाते रहेंगे और एडमिशन पॉलिसी कमेटी जो बनेगी उन्हें अपना मेमोरेंडम देंगे कि छात्रों के एडमिशन में 90% एंट्रेंस एग्जाम द्वारा छात्रों को एडमिशन दिया जाए. इससे जो लायक और काबिल छात्र होंगे उन्हें जेएनयू में पढ़ने का मौका मिलेगा.

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जारी रहेगा एबीवीपी का आंदोलन

एबीवीपी छात्र पहले भी एडीजीपी पद्धति से हो रहे एडमिशन के खिलाफ जेएनयू प्रशासन को मेमोरेंडम दे चुके हैं. लेकिन प्रशासन के तरफ से उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला. उसके बाद इन लोगों ने मार्च निकाला और कहा कि आगे उनका आंदोलन और तेज होगा.

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'लेफ्ट के छात्रों को दिया जा रहा एडमिशन'

जेएनयू के एबीवीपी के छात्रों का कहना है कि इस पद्धति से एडमिशन होने से काबिल छात्रों को मौका नहीं मिल रहा है. बल्कि लेफ्ट विचार धारा के छात्रों को ही मौका दिया जा रहा है. जो गलत है. जेएनयू मे देश भर से छात्र पढ़ने के लिए आते हैँ और अगर ये पद्धति लागू रही तो जेएनयू का नाम खराब होगा.

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