हैदराबाद: सातारा के प्रवीण जाधव के पास बचपन में दो ही रास्ते थे, या तो अपने पिता के साथ दिहाड़ी मजदूरी करते या बेहतर जिंदगी के लिए ट्रैक पर सरपट दौड़ते. लेकिन उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ओलंपिक में तीरंदाजी जैसे खेल में वह भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे.
सातारा के सराडे गांव के इस लड़के का सफर संघर्षों से भरा रहा है. वह अपने पिता के साथ मजदूरी पर जाने भी लगे थे, लेकिन फिर खेलों ने प्रवीण जाधव परिवार की जिंदगी बदल दी.
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बता दें, परिवार चलाने के लिए उनके पिता ने कहा, स्कूल छोड़कर उन्हें मजदूरी करनी होगी. उस समय वह सातवीं कक्षा में थे.
जाधव के मुताबिक, हमारी हालत बहुत खराब थी. मेरा परिवार पहले ही कह चुका था कि सातवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ना होगा, ताकि पिता के साथ मजदूरी कर सकूं.
एक दिन जाधव के स्कूल के खेल प्रशिक्षक विकास भुजबल ने उनमें प्रतिभा देखी और एथलेटिक्स में भाग लेने को कहा.
जाधव ने बताया, विकास सर ने मुझे दौड़ना शुरू करने के लिए कहा. उन्होंने कहा, इससे जीवन बदलेगा और दिहाड़ी मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी. मैंने 400 से 800 मीटर दौड़ना शुरू किया.
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