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'अपने लिए नहीं देश के लिए खेलता था युवराज'

युवराज के सन्यास लेने के बाद उनके बचपन के कोच सुखविंदर बावा ने कहा है कि, ' युवराज जो कुछ करता है, देश के लिए करता है, अपने लिए उसने एक भी पारी नहीं खेली. मैंने कई बार टोका कि अपना विकेट क्यों फेंक दिया तो कहता था सर वहां टीम को मेरी जरूरत थी. सो, मैंने देश के लिए यह फैसला लिया

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Published : Jun 11, 2019, 5:56 PM IST

नई दिल्ली: युवराज सिंह क्रिकेट के चाहने वालों के लिए हीरो हैं लेकिन अपने कोच की नजर में वह एक लेजेंड हैं. युवराज को क्रिकेट की बारीकियां सिखाने वाले कोच सुखविंदर बावा मानते हैं कि एक दिन पहले क्रिकेट को अलविदा कहने वाले युवराज सही मायने में लेजेंड हैं क्योंकि उन्होंने क्रिकेट जगत का सबसे बड़ा कमबैक किया है.

वैसे तो युवराज के पिता योगराज सिंह ने उन्हें क्रिकेट से रूबरू कराया और आगे लेकर आए लेकिन युवराज 15-16 साल की उम्र में सुखविंदर के पास पहुंचे थे और तब से युवराज को आगे लेकर आने में सुखविंदर का बड़ा हाथ है.

युवराज सिंह के बचपन के कोच सुखविंदर बावा

युवराज एक लेजेंड

अपने इस शिष्य के संन्यास पर सुखविंदर ने मीडिया से कहा, ''मेरे लिए वो हमेशा लेजेंड रहेगा. उसके लिए यह फैसला लेने का सही वक्त था. मेरी नजर में उसने क्रिकेट इतिहास का सबसे बड़ा कमबैक किया था, इसलिए वो लेजेंड है ''

देश के लिए खेलता था युवराज

सुखविंदर ने भारत के लिए 400 से अधिक मैच खेलने वाले युवराज के कहा, आप लोगों ने टीवी में उसका एग्रेशन. उसका जुनून देखा है. असल जिंदगी में वह बिल्कुल ऐसा नहीं है, वह जिंदादिल है. वह जो कुछ करता है, देश के लिए करता है, अपने लिए उसने एक भी पारी नहीं खेली. मैंने कई बार टोका कि अपना विकेट क्यों फेंक दिया तो कहता था सर वहां टीम को मेरी जरूरत थी. सो, मैंने देश के लिए यह फैसला लिया."

युवराज सिंह

बावा के मुताबिक जो इंसान गलत देखकर उसके खिलाफ आवाज उठाना जानता हो, उसके अंदर एग्रेशन तो होना ही चाहिए और युवराज भी ऐसा ही है. बावा ने कहा, वह गलत होता देख आंखें बंद नहीं कर सकता. वह उसके खिलाफ आवाज उठाता है और हालात सुधारने की कोशिश करता है, इसके लिए आक्रामक होना जरूरी है. अगर ऐसा न हो तो इंसान लाश हो जाता है.

युवराज मानसिक तौर पर मजबूत

युवराज का करियर रोमांचक और प्रेरक रहा है. 2011 विश्व कप के दौरान ही कैंसर के लक्षण दिखने लगे थे लेकिन युवी ने हार नहीं मानी और देश को 28 साल बाद सिरमौर बनाया. इसके बाद देश को पता चला कि युवी को कैंसर है. सबका बुरा हाल था और कोच इससे अलग नहीं थे. बावा मानते हैं कि जो इंसान अपनी इच्छाशक्ति के दम पर कैंसर को हरा सकता है, वह मानसिक तौर पर कितना मजबूत है, यह किसी को समझाने की जरूरत नहीं.

कोच ने कहा, वह कैंसर के खिलाफ जंग जीतकर आया है, आप सोच लीजिए कि वह मानसिक तौर पर कितना मजबूत होगा. बीमारी के कारण शरीर थोड़ा कमजोर हुआ और वह खेल की जरूरतों के हिसाब से खुद को ढाल नहीं पाया. इस क्रम में उससे प्रतिस्पर्धा रखने वाले आगे निकल गए.

युवराज सिंह

ये थी युवराज की सबसे बेहतरीन पारी

जब भी युवराज का नाम जेहन में आता है तो स्टुअर्ट ब्रॉड पर लगाए गए छह छक्के याद आ जाते हैं. कोच के मुताबिक युवी की कई ऐसी परियां हैं जो बेमिसाल रहीं लेकिन कूच बिहार ट्रॉफी में खेली गई 358 रनों की पारी और युवी का लाहौर में टेस्ट शतक उनके लिए सभी पारियों से ऊपर हैं.

युवराज सिंह कुच बिहार ट्रॉफी जीतने के बाद

कोच ने कहा, उसने बहुत बड़ी-बड़ी पारियां खेलीं, लेकिन मैं एक पारी का जिक्र करूंगा. एमएस धोनी फिल्म में भी उस पारी का जिक्र है. उसने मुझसे वादा करके अकेले 358 रन बनाए थे. मैं उस समय पंजाब की टीम का कोच था. मैच जमशेदपुर के टाटा नगर में हो रहा था. उसने ढाई दिन बल्लेबाजी की, उसमें से डेढ़ दिन मैं साइट स्क्रीन के पास खड़ा होकर उसे समझता रहा कि खेलता रहे. ऊंचा नहीं मारे. मेरी नजर में वो पारी उसकी सबसे बेहतरीन पारी है. इसके अलावा उसका लाहौर में पाकिस्तान में टेस्ट शतक. इत्तेफाक की बात है कि मैं वहां भी था, मुझे यह दो पारियां बहुत पसंद हैं.

सुखविंदर कहते हैं कि युवराज बचपन में लगातार उनसे पूछता रहता कि वो इंडिया कब खेलेगा और जबाव में कोच अपने शिष्य के लिए टारेगट सेट कर देते थे.

युवराज के करियर में उनकी मां का येगदान अहम

युवराज सिंह अपनी मां के साथ
सुखविंदर ने युवराज की मां शबनम के योगदान को भी उनके करियर में अहम बताया है, जो बैकडोर पर हमेशा अपने बेटे के साथ जिंदगी के हर उतार-चढ़ाव में खड़ी रहीं.युवराज ने भी अपने अंतिम सम्बोधन में सोमवार को कहा कि उनकी मां ने उन्हें दो बार जन्म दिया है और उनके लिए शक्ति का स्रोत रही हैं.

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