हाइफा (इजराइल) : उत्तरी इजराइल के तटवर्ती शहर हाइफा ने पहले विश्व युद्ध के दौरान ऑटोमन साम्राज्य से शहर को मुक्त कराने के लिए गुरुवार को बहादुर भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी.
गौरतलब है कि ऑटोमन साम्राज्य के शासन से हाइफा की मुक्ति को ज्यादातर युद्ध इतिहासकार 'अंतिम महान अश्वारोही अभियान'' बताते हैं.
भारतीय सेना अपनी तीन बहादुर कैवेलरी रेजीमेंट मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर्स को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 23 सितंबर को 'हाइफा दिवस' मनाती है. इन तीनों रेजीमेंट ने 15वीं इम्पीरियल सर्विस कैवेलरी ब्रिगेड के साहसी अभियान के बाद हाइफा को मुक्त कराया था.
युद्ध में बहादुरी के लिए कैप्टन अमन सिंह बहादुर और दफादार जोर सिंह को 'इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट' और कैप्टन अनूप सिंह और सेकेंड लेफ्टिनेंट सागत सिंह को 'मिलिट्री क्रॉस' से सम्मानित किया गया था.
'हाइफ के हीरो' के नाम से प्रसिद्ध मेजर दलपत सिंह को उनकी बहादुरी के लिए मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया था.
हाइफा में स्थित भारतीय कब्रिस्तान में एकत्र लोगों को संबोधित करते हुए इजराइल में भारत के राजदूत संजीव सिंगला ने पहले विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों के अभियान को 'उस समय के शानदार अश्वारोही अभियानों में से एक बताया जिसने युद्ध में औद्योगिकीकरण और बड़े पैमाने पर मशीनों के उपयोग को बढ़ावा दिया.'
स्थानीय इतिहासकार ईगल ग्रैवियर ने बताया कि भालों और तलवारों से लैस भारतीय कैवेलरी रेजिमेंट ने सर्वेच्च बहादुरी दिखाई और माउंट कार्मेल के पथरीले रास्तों से दुश्मन का सफाया कर दिया.
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सिंगला ने कहा, 'पहले विश्व युद्ध में 10 लाख से ज्यादा भारतीय सैनिकों ने अपने घरों से दूर विदेशी मोर्चों पर लड़ाई लड़ी. आज हम बहादुरी के साथ युद्ध लड़ने वाले और सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों की बहादुरी और बलिदान को श्रद्धांजलि देते हैं. उन्होंने ऐसे समय में अपना सबकुछ बलिदान किया जब उनके अपने, परिजन उनके सुरक्षित वापसी का इंतजार कर रहे थे.'
(पीटीआई-भाषा)