बर्लिन : संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था के प्रमुख राफेल ग्रोसी ने यूरोपीय सांसदों से कहा कि ईरान के साथ 2015 में किए गए समझौते में अमेरिका की वापसी मुमकिन है, लेकिन दोनों पक्षों को वार्ता के लिए तैयार रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा है कि वह एजेंसी की निष्पक्ष भूमिका के तहत दोनों पक्षों से बातचीत कर रहे हैं.
दरअसल, अमेरिका तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में 2018 में एकतरफा रूप से इस समझौते अलग हो गया था लेकिन नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संकेत दिया है कि अमेरिका इस समझौते में वापस आने की इच्छा रखता है. मगर इसमें कई मसले हैं.
ईरान समझौते के तहत लगाई गई पबांदियों का उल्लंघन कर रहा हैं जैसे उसे जितनी मात्रा में संवर्धित यूरेनियम का भंडारण करने की इजाजत है, उससे ज्यादा का भंडारण कर रहा है. हालांकि उसके इस कदम को समझौते में शामिल अन्य देशों-रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन पर दबाव बनाने के तौर पर देखा जा रहा है.
ईरान कह चुका है कि वह समझौतों की शर्तें तब मानना शुरू करेगा जब अमेरिका अपने दायित्वों का पालन करे और उस पर लगाई गईं पाबंदियों को हटाए. वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से यूरोपीय संसद के समक्ष पेश हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के महानिदेशक राफेल ग्रोसी ने कहा कि पिछले दो सालों में ईरान ने काफी सारी परमाणु सामग्री जमा कर ली है और नई क्षमताएं हासिल की हैं और इस समय का इस्तेमाल उसने इन क्षेत्रों में अपने कौशल को बेहतर करने के लिए किया है.
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ग्रोसी ने कहा कि वह एजेंसी की निष्पक्ष भूमिका के तहत दोनों पक्षों से बातचीत कर रहे हैं और उनका मानना है कि इस समझौते में अमेरिका की वापसी मुमकिन है. उन्होंने कहा, 'वे वापस आना चाहते हैं, लेकिन कई मुद्दे हैं जिन पर स्पष्टता की जरूरत है. यह असंभव नहीं है लेकिन मुश्किल है. इस समझौते को 'ज्वाइंट कॉम्प्रीहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन' (जेसीपीओए) के नाम से जाना जाता है.