लंदन : यूरोपीय अस्पताल बेहतर सुविधाएं देने के लिए जाने जाते हैं लेकिन आज कोरोना वायरस महामारी ने इन्हें भी कमजोर बना दिया है. कोविड-19 के हजारों रोगियों की बढ़ती तादाद को रोकने में यह भी नाकाम होते जा रहे हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी से लड़ने का अनुभव न होना और शुरुआत में इसके परिणाम को न समझ पाना ही आज इस बीमारी के बढ़ते प्रसार का कारण है.
बेल्जियम में बनाए गए ऑपरेशन कोविड-19 डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के प्रमुख ब्रिस डे ले विंगने (Brice de le Vingne) का कहना है कि यूरोप में 100 से अधिक वर्षों में भी ऐसा प्रकोप नहीं आया और इसलिए आज वह यह नहीं जानते कि उन्हें क्या करना है.
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई देशों को फटकार लगाई थी. संगठन का कहना था कि देशों को इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिए दो महीने पहले ही आक्रामक कदम उठाने चाहिए थे.
ब्रिस डे ले विंगने (Brice de le Vingne) ने अफ्रीकी देशों में फैले इबोला का जिक्र करते हुए कहा कि जब वहां लोग इसका शिकार हो रहे थे, तब वहां के अधिकारी दैनिक रूप से इसके आंकड़े साझा करते थे.
पिछले साल के अंत में सामने आए इस नए कोरोना वायरस के उभरने के बाद चीन ने वुहान में करीब नौ हजार स्वास्थ्य कर्मचारियों की कई टीमें बनाईं, जो इस बीमारी के संपर्क में आने वालों की खोज और जांच करती थीं.
लेकिन इटली में ऐसा नहीं हुआ. वहां अधिकारियों ने अपनी बीमारी के बारे में बताने की जिम्मेदारी बीमार रोगियों पर ही छोड़ दी और उनकी हर दिन की जांच के लिए फोन कॉल का सहारा लिया गया.
वहीं स्पेन और ब्रिटेन दोनों ने यह जानकारी देने से मना कर दिया कि कितने स्वास्थ्य कार्यकर्ता संक्रमित लोगों को खोजने या जांचने का काम कर रहे हैं.
विशेषज्ञों ने बताया कि ब्रिटेन के अस्पताल सांस से संबंधित बीमारियों का इलाज करने के लिए बेहतर माने जाते हैं. लेकिन आज वह भी इस बीमारी से लड़ने में नाकामी झेल रहे हैं.
पश्चिमी स्वास्थ्य प्रणालियां रोगी-केंद्रित देखभाल पर केंद्रित होती हैं. जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी से लड़ने के लिए इन्हें समुदाय-केंद्रित देखभाल वाली प्रणाली का होना चाहिए. और ऐसी व्यवस्था आमतौर पर अफ्रीका या एशिया के कुछ देशों में देखी जाती है.
उनका कहना है कि विकासशील देशों को इस तरह के उपायों को करने की सख्त जरूरत है. साथ ही साथ उन्हें वैकसीन कैंपेन की ओर भी ध्यान देना चाहिए. स्पेन में कोरोना वायरस के 14% मामलें ऐसे हैं, जो संक्रमितों का इलाज करने के बाद खुद संक्रमित हो गए.