हैदराबाद : मैनहट्टन प्रोजेक्ट पर काम करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मई में जर्मनी के नाजी के आत्मसमर्पण के बाद जुलाई 1945 में परमाणु बम का सफल परीक्षण किया था. तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रूमैन ने युद्ध पर हेनरी स्टिमसन के सचिव की अध्यक्षता में सलाहकारों की एक समिति बनाई थी, जो यह विचार करने के लिए थी कि जापान पर परमाणु बम गिराना है या नहीं. इंडिपेंडेंस मिसौरी में हैरी एस. ट्रूमैन प्रेसिडेंशियल लाइब्रेरी के पर्यवेक्षक सैम रुशाय ने सीएनएन को बताया कि उस समय समिति के सदस्यों के बीच बम गिराने के निर्णय के समर्थन में व्यापक सहमति थी.
स्टिम्सन अड़े हुए थे कि बम का इस्तेमाल किया जाए. हार्वर्ड विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर चार्ल्स मैयर ने कहा कि ट्रूमैन के हाथ में कोई और निर्णय लेना भी संभव था. उन्होंने कहा कि अमेरिकी जनता के सामने जवाब देना मुश्किल हो जाएगा जब वो पूछेगी कि क्यों युद्ध को लंबा खींचा गया जब हथियार उपलब्ध थे तो. इसे बहुत सारी मुश्किलों से बचने का आसान समाधान समझा गया.
द्वितीय विश्व युद्ध पर पाठ्यक्रम सिखाने वाले मायर ने कहा कि जापान बिना शर्त आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार नहीं था और इस बात की चिंता थी कि युद्ध से काम नहीं होगा.
रूशाय ने बताया कि जापान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने के लिए विस्फोट किया गया होगा. इसके पक्ष में वैज्ञानिकों का समूह और युद्ध के सहायक सचिव जॉन मैककॉयल थे. उन्होंने कहा कि ट्रूमैन और उनके सैन्य सलाहकारों को जापान में व्यापक विध्वंस की आशंका थी.
मायर ने कहा कि अमेरिकी सैन्य योजनाकारों को विश्वास था कि जापानी अपनी अंतिम सांस तक लड़ेगा. आत्मघाती हमले आज काफी आम चुके हैं, लेकिन उस समय जापानियों के आत्मघाती कामिकेज हमलों ने अमेरिकी सैना पर कठोर निर्णय लेने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला था.