तोक्यो : शुरू होने से पहले ही, तोक्यो में ओलंपिक खेलों के आयोजन को कोई बहुत उत्साहवर्धक घटना नहीं माना जा रहा. इनका आयोजन मूल रूप से पिछली गर्मियों के लिए निर्धारित किया गया था, लेकिन महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया, अब इसे आयोजित करने के निर्णय पर व्यापक रूप से सवाल उठाए गए हैं.
जैसे ही खेल आरंभ होंगे, जापान की राजधानी में आपातकाल की स्थिति होगी. पूरी दुनिया की नजरें एक ऐसी सरकार पर होंगी, जो एक वैश्विक सार्वजनिक-स्वास्थ्य संकट की पृष्ठभूमि में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित खेलों का आयोजन करने जा रही है.
अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत होंगे कि खेलों को बीमारी फैलाने वाली घटना के रूप में याद नहीं किया जाए. साथ ही, वे एक ऐसी घटना से कुछ हासिल करने के लिए बेताब होंगे, जिसे जापान में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने के साधन के रूप में देखा जा रहा था.
ओलंपिक खेलों की मेजबानी के अधिकारों के लिए बोली लगाने का निर्णय 2011 में फुकुशिमा सुनामी के तुरंत बाद किया गया था. उस समय ओलंपिक खेलों के आयोजन को देश को त्रासदी से उबरने में मदद करने के एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा गया था.
लगभग उसी समय, जापान की सरकार ने खेलों के माध्यम से राष्ट्रीय सुख संपदा को बढ़ाने में मदद के लिए बनाए गए कानून पारित किए. एक लिहाज से देखा जाए तो खेलों का उद्देश्य हमेशा आयोजक देश को अधिक समृद्ध बनाना रहा है.
फिर भी, जब 2012 में शिंजो आबे प्रधान मंत्री बने, तो जापान की ओलंपिक की मेजबानी ने एक अलग रंग ले लिया. आबे ने इसे अपने देश की छवि और दुनिया की स्थिति को मौलिक रूप से बदलने के तरीके के रूप में देखा.
जापान, कई विकसित देशों की तरह, सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों का सामना कर रहा है. उसकी 40% आबादी शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं है. साथ ही, इसके खिलाड़यों ने पिछले ओलंपिक खेलों में अक्सर हलका प्रदर्शन किया है.
2016 में जापान ने अपने 338 खिलाड़ियों को रियो डी जनेरियो खेलों में हिस्सा लेने भेजा, लेकिन वह केवल बारह स्वर्ण पदक जीत पाए. इसके मुकाबले, ग्रेट ब्रिटेन, जिसकी आबादी जापान से लगभग आधी है, उस वर्ष 27 स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहा.
आबे का मानना था कि ओलंपिक खेलों का आयोजन इन मुद्दों को हल करने में मदद कर सकता है. उन्होंने खेलों के आयोजन में देश की कुछ राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने के अवसर भी देखे. पिछले तीन दशकों में, जापान की औद्योगिक श्रेष्ठता को आर्थिक ठहराव का सामना करना पड़ा है, जो उसके पड़ोसियों और प्रतिस्पर्धियों के उदय से जटिल हो गया है.
उधर चीन एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बन गया है और दक्षिण कोरिया इलेक्ट्रॉनिक्स में एक विश्व नेता बन गया है, जापान को मंगा, कंसोल खेल और सुशी के केन्द्र के रूप में एक पुरानी छवि के साथ पीछे छोड़ दिया गया है. 21वीं सदी में, देशों की छवि और सॉफ्ट पावर मायने रखती है, और जापान ने हाल में कोई पुरस्कार नहीं जीता है.
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सॉफ्ट पावर की एक रैंकिंग में, सरकार में विश्वास, लैंगिक असमानता और सांस्कृतिक दुर्गमता के बारे में अंतरराष्ट्रीय चिंताओं के बीच जापान की वैश्विक स्थिति को झटका लगा है.