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चीन ने नागरिकों के ताइवान जाने पर रोक लगाई, भारी नुकसान की आशंका

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Published : Aug 1, 2019, 12:10 AM IST

चीन-ताइवान के कड़वे संबंधों के बीच में एक और परत चढ़ गई है. दरअसल ताइवान का राष्ट्रपति चुनाव जनवरी में होना वाला है. इसी के मद्देनजर चीन ने ताइवान जाने के लिए एकल यात्रा परमिट पर रोक लगा दिया है. इस रोक से ताइवान को भारी आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है. जानें क्या है मुद्दा...

चीन ने ताइवान जाने के लिए एकल यात्रा परमिट पर रोक लगा दिया

बीजिंग:चीन ने बुधवार को ताइवान जाने के लिए एकल यात्रा परमिट पर रोक लगा दिया है. ताइवान-शासित द्वीप पर चीन ने अपने नागरिकों की यात्रा प्रतिबंधित कर दी है. चीनी पर्यटन मंत्री ने बयान जारी कर बताया, 'हाल के दिनों में रिश्तें देखते हुए गुरुवार से यात्रा रोक दी जाएगी.'

जानकारी हेतु एक कार्यक्रम के तहत चीनी नागरिकों को एकल परमिट पर ताइवान के 49 मुख्य शहरों के यात्रा का अनुमति मिल रही थी. समूह में नागरिकों को ताइवान यात्रा की अनुमति नहीं मिलती थी. हाल फिलहाल दोनों देशों के संबंधों मे कड़वाहट काफी बढ़ चुकी है.

इस रोक से ताइवान को अधिक आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है.

बता दें, 2016 में राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के सत्ता में आने के बाद से कम्युनिस्ट शासित बीजिंग और ताइपे के बीच संबंध खराब हो गए थे. राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन चीन के 'एकीकृत चीन' विचार के मुखर विरोधी है.

इसके जबाव में बीजिंग ने द्वीप पर आक्रामक कदम उठाए थे. आधिकारिक संबंधों में कटौती, सैन्य अभ्यास बढ़ाना, कूटनीतिक और आर्थिक दबाव बढ़ाया था.

बता दें कि ताइवान में राष्ट्रपति पद के लिए जनवरी में चुनाव होने वाला है. इसी के मद्देनजर चीन ने यह कदम उठाया है.

दरअसल बीजिंग के अनुकूल उम्मीदवार हान कुओ-यू विपक्षी कुओमितांग पार्टी (केएमटी) से उम्मीदवार है. वहीं डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) से राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन होगें. चीन पूर्व में हावी होकर चुनाव प्रभावित करना चाहता है.

पढ़ें- ताइवान राष्ट्रपति चुनाव : नेशनलिस्ट पार्टी ने हान कुओ-यू को बनाया उम्मीदवार

रविवार को भाषण में कुओमितांग पार्टी के 62 वर्षीय उम्मीदवार हान कुओ-यू कहा कि, 'चुनाव चीन के साथ 'शांति या संकट' के बीच का विकल्प होगा.'

दूसरी तरफ 62 वर्षीय हमउम्र राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन 2020 के राष्ट्रपति चुनाव को 'स्वतंत्रता और लोकतंत्र' की लड़ाई बता रहे हैं. वह स्वयं को ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश कर रहे है, जो बीजिंग से ताइवान की रक्षा कर सकता है.

गौरतलब है की 1949 में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद से ताइवान एक संप्रभु राष्ट्र रहा है. लेकिन चीन इस द्वीप को अपना क्षेत्र मानता है. किसी भी स्थिति में अपना अधिकार जमाना चाहता है.

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