वॉशिंगटन : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और चुनावों से पहले उनकी सेहत को लेकर कई तरह की चिंताएं प्रकट की जा रही हैं. उनसे पहले भी कई राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान बीमार पड़े हैं लेकिन यहां गौर करने वाली कटु सच्चाई यह है कि कई राष्ट्रपतियों ने अपने स्वास्थ्य को लेकर देश की जनता को अंधेरे में रखा.
जहां कई राष्ट्रपतियों की बीमारियां मामूली थी तो कई की बेहद गंभीर और कभी-कभी तो ऐसा हुआ कि जनता को इस सच्चाई का पता लगने में दशकों बीत गए. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस से संक्रमित हैं, पहले तो ह्वाइट हाउस ने बताया कि उनमें संक्रमण के आंशिक लक्षण हैं लेकिन शुक्रवार शाम तक वह वाल्टर रीड नेशनल मिलिटरी मेडिकल सेंटर में भर्ती हुए. ट्रंप के चिकित्सकों की एक टीम के संवाददाता सम्मेलन के बाद ह्वाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ मार्क मीडोज ने शनिवार को कहा कि ट्रंप शुक्रवार को बेहद चिंताजनक स्थिति से गुजरे हैं और अगला 48 घंटा उनके स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण रहने जा रहा है.
बात करें महामारी की तो ट्रंप और वुडरो विल्सन दोनों का कार्यकाल इससे ग्रस्त रहा है. दोनों ने ही वायरस को कमतर करके देखा और इससे हजारों अमेरिकी लोगों की मौत हुई. दोनों ही राष्ट्रपति बीमार पड़े और दोनों को ही इस पर विचार करना पड़ा कि इसकी जानकारी जनता को कैसे दी जाए. विल्सन की बीमारी को ह्वाइट हाउस ने गुप्त रखने की भी कोशिश की थी. विल्सन प्रथम विश्वयुद्ध को समाप्त करने पर चर्चा करने के लिए पेरिस में थे. वह अप्रैल 1919 को बीमार पड़ गए. उनमें इतने गंभीर लक्षण अचानक से दिखने शुरू हो गए कि उनके निजी चिकित्सक कैरी ग्रैसन को लगा कि उन्हें जहर दिया गया है. रात भर विल्सन की देखरेख के बाद ग्रैसन ने एक पत्र वॉशिंगटन भेजा जिसमें उन्होंने ह्वाइट हाउस को बताया कि राष्ट्रपति बेहद बीमार हैं.
अब 100 साल आगे आते हैं. ट्रंप ने शुक्रवार को रात 12 बजकर 54 मिनट पर ट्वीट कर दुनिया को बताया कि वह और मेलानिया ट्रंप कोविड-19 की चपेट में आ गए हैं. अमेरिका में कोरोना वायरस महामारी से 2,08,000 लोगों की मौत हो चुकी है और राष्ट्रपति ट्रंप यह कह चुके हैं कि उन्होंने वायरस को कमतर करके बताया कि क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि लोगों में अफरातफरी मचे. लेकिन ऐसा करने के पीछे राजनीतिक वजह थी. तीन नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं और वह नहीं चाहते थे कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था चुनाव से पहले चरमरा जाए.
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन बेरी की कहना है, विल्सन प्रशासन ने भी अन्य वजह से महामारी को कमतर करके देखा था. बेरी की किताब ग्रेट इंफ्लुएंजा में बताया गया है कि 1918-19 के बीच इस महामारी से विल्सन बीमार पड़े थे और अमेरिका के 6,75,000 लोगों की मौत हुई थी.
शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विलियम होवेल का कहना है कि वह यह देख रहे हैं कि ट्रंप के मामले में ह्वाइट हाउस कितना पारदर्शी रहता है. अमेरिका का इतिहास ऐसी जानकारियों से भरा पड़ा है कि राष्ट्रपतियों ने कैसे आम लोगों को अपनी बीमारी और चिकित्सीय स्थितियों को लेकर अंधेरे में रखा था.