नई दिल्ली : अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के 81.09 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिर जाने से कच्चे तेल (crude oil) और अन्य जिंसों का आयात महंगा हो जाएगा जिससे मुद्रास्फीति (inflation) और बढ़ जाएगी. मुद्रास्फीति पहले से ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अधिकतम सुविधाजनक स्तर छह फीसदी से ऊपर बनी हुई है. अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों को बार-बार बढ़ाने से भारतीय रुपये पर बना दबाव व्यापार घाटा बढ़ने और विदेशी पूंजी की निकासी की वजह से और बढ़ने की आशंका है.
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) इस सप्ताह के अंत में द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा करने वाली है. इसमें मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए वह रेपो दर में 0.50 प्रतिशत की वृद्धि का फैसला कर सकती है. भारत अपनी 85 फीसदी तेल जरूरतों और 50 फीसदी गैस जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है. ऐसी स्थिति में रुपये में कमजोरी का असर ईंधन की घरेलू कीमतों पर पड़ सकता है.
मिल मालिकों के संगठन सॉलवेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने कहा कि इससे आयातित खाद्य तेलों की लागत बढ़ जाएगी. इसका भार अंतत: उपभोक्ताओं पर पड़ेगा. अगस्त 2022 में वनस्पति तेल का आयात पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 41.55 फीसदी बढ़कर 1.89 अरब डॉलर रहा है.