नई दिल्ली : दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक चीन बेरोजगारी के बुरे दौर से गुजर रहा है. कोविड जीरो पॉलिसी हटाने के बाद देश की अर्थव्यवस्था फिर से खुल गई है. लेकिन वहां के 16-24 साल के युवाओं में बेरोजगारी बढ़ गई है. नवीनतम जारी आंकड़ों के अनुसार इस साल बेरोजगारी दर अप्रैल में 3.7 फीसदी से बढ़कर 20.4 फीसदी हो गई है. अर्थशास्त्री हैरान हैं कि आर्थिक गतिविधियों को फिर से खोलने से बेरोजगारी में गिरावट आनी चाहिए थी लेकिन यह बढ़ गई है.
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के प्रमुख अर्थशास्त्री लुईस लू का मानना है कि महामारी के बाद से चीन में उच्च युवा बेरोजगारी, सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह की जोखिमों को पैदा करता है. कुछ रिसर्च का हवाला देते हुए, लुईस लू ने कहा कि जनसंख्या के हिसाब से इस ऐज के लोग रूम रेंट देने, कपड़े खरीदने, घूमने- फिरने और सांस्कृतिक सेवाओं जैसी वस्तुओं पर सबसे अधिक खर्च करने वालों में से एक हैं. लेकिन उनके पास इनकम का स्रोत नहीं रहेगा या कम रहेगा, तो वह खर्च नहीं कर पाएंगे. जिसका असर देश में वस्तुओं के उपभोग पर पड़ेगा और यह अर्थव्यवस्था को विपरीत परिस्थितियों में ले जा सकता है.
युवा बेरोजगारी महामारी से परे है
आर्थिक थिंक टैंक के रिसर्चस के अनुसार, चीन में आई बेरोजगारी केवल एक महामारी की कहानी नहीं है. बेरोजगारी की समस्या का एक हिस्सा प्रकृति का है, जो समय के साथ स्वाभाविक रूप से कम हो जाएगा. उदाहरण के लिए, 2020 में महामारी की शुरुआत में चीन के शिक्षा मंत्रालय ने बेरोजगारी को कम करने के लिए यूनिवर्सिटिज को मास्टर उम्मीदवारों की संख्या 189,000 तक बढ़ाने का आदेश दिया. जो कि 25 फीसदी से वृद्धि थी. इस हिसाब से 2020 में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई के लिए एडमिशन करवाने वाले छात्रों को इस साल नौकरी की तलाश है. लुईस लू ने कहा कि इसलिए यह संभावना है कि इस साल न चाहते हुए भी युवा बेरोजगारी अपने चरम पर है.