नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा को आर्थिक सुधार प्रक्रिया के लिए एक झटके के रूप में भी देखा जा रहा है. कुछ अर्थशास्त्रियों ने इन कानूनों के अभाव में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए वैकल्पिक मॉडल पेश (Alternative models offered) किए हैं.
भारत के सबसे बड़े बैंक- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष (Soumya Kanti Ghosh) ने पांच सुझाव दिए हैं. इनमें किसान की कुल उपज के एक निश्चित प्रतिशत की गारंटीकृत खरीद, इलेक्ट्रॉनिक मंडियों (e-NAM) पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को राष्ट्रीय फ्लोर प्राइस के रूप में माना जाना, मौजूदा कृषि उपज विपणन समितियां (APMC) मंडियों को मजबूत करना शामिल है. बता दें कि एपीएमसी का एक उद्देश्य फसल की बर्बादी रोकना भी है.
अंतिम दो सुझावों में किसानों के लिए एक अखिल भारतीय अनुबंध कृषि संस्थान (All India Institute of Contract Agriculture) की स्थापना और सभी राज्यों से गेहूं और धान की समान खरीद शामिल है. क्योंकि पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े उत्पादक राज्यों से खरीद (Procurement from major producing states), पंजाब व हरियाणा जैस छोटे राज्यों से खरीद की तुलना में कम रहती है.
प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price for Public Procurement) को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के कदमों सहित अन्य लंबित मुद्दों को तय करने के लिए एक समिति बनाने की भी घोषणा की है.
हालांकि प्रधानमंत्री ने किसानों से अपने घर वापस जाने की अपील की है लेकिन स्पष्ट रूप से कुछ किसान संगठन, विशेष रूप से संयुक्त किसान मोर्चा को संतुष्ट करने में विफल रहा क्योंकि यह न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी (Legal guarantee for MSP) की अपनी मांग पर अड़ा हुआ है.
गतिरोध समाप्त नहीं हुआ है लेकिन स्टेट बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष (Chief Economist Soumya Kanti Ghosh) ने पांच प्रमुख कृषि सुधारों की पेशकश की है. जो तीन कृषि कानूनों के बिना भी प्रमुख प्रवर्तक के रूप में कार्य कर सकते हैं. घोष कहते हैं कि मूल्य गारंटी के रूप में एमएसपी हमेशा एक मुश्किल मुद्दा रहा है और एमएसपी पर अनाज खरीदने से कीमतें एमएसपी से भी काफी नीचे आ जाएंगी.
भारतीय कृषि उपज बाजार की गतिशीलता पर टिप्पणी करते हुए घोष कहते हैं कि निजी खरीदारों को हमेशा विक्रेताओं के साथ एक अलग सौदा करने में प्रोत्साहन मिलेगा क्योंकि बड़ी संख्या में छोटे और सीमांत किसान अपनी उपज बेचने के लिए बेताब होंगे लेकिन वे बेच नहीं पाएंगे.
खरीद मात्रा की गारंटी मिले कीमत की नहीं : रिसर्च
घोष का कहना है कि ऐसे में सरकार को दो बातों पर विचार करना चाहिए. सबसे पहले एमएसपी के बजाय एक मूल्य गारंटी के रूप में, जिसकी किसान मांग कर रहे हैं, सरकार कम से कम पांच साल की अवधि के लिए एक मात्रा गारंटी कानून (quantity guarantee law) ला सकती है. जिससे वर्तमान में खरीदी जा रही फसलों के उत्पादन प्रतिशत की खरीद सुरक्षा उपायों के साथ पिछले वर्ष के प्रतिशत के बराबर होनी चाहिए.
उन्होंने रिपोर्ट में लिखा कि खरीद के मामले में ऐतिहासिक प्रवृत्ति इंगित करती है कि गेहूं की औसत खरीद वित्त वर्ष 2014 में 26 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 21 में 36 फीसदी और धान की 30 फीसदी से बढ़कर 48 फीसदी हो गई है.