बिजनेस डेस्क, ईटीवी भारत : साल 2020 को भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक साल के रूप में याद किया जाएगा. लंबे समय तक 4 फीसदी से कम की विकास दर, उच्च इनपुट लागत, किसानों की आत्महत्या और नीति निर्मताओं की उदासीनता की पहचान बनाया हुआ क्षेत्र इस बार दो महत्वपूर्ण कारणों से सुर्खियों में है- नए कृषि कानून और बंपर फसल उत्पादन.
रिवर्स माइग्रेशन और बंपर उत्पादन
कोविड-19 महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को थाम दिया. 24 मार्च की मध्य रात्रि से शुरू हुआ देशव्यापी लॉकडाउन ने उद्योगों की आपूर्ति श्रृंखला को तोड़ दिया. इन सबके बीच एकमात्र राहत कृषि क्षेत्र से थी.
कृषि एकमात्र क्षेत्र था, जिसने अप्रैल-जून तिमाही के दौरान सकारात्मक वृद्धि दर (3.4 प्रतिशत) दर्ज की थी और बाद की तिमाही में भी यही गति जारी रही.
कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व सदस्य डॉ ए नारायणमूर्ति ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि पिछले छह महीनों में रिवर्स माइग्रेशन के कारण कृषि उत्पादन बढ़ा है.
उन्होंने कहा, "खरीफ और रबी में फसली क्षेत्र में पहले की तुलना में काफी वृद्धि हुई है. कुछ फसलों में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. यहां यह ध्यान देने योग्य है कि यह उच्च उत्पादन इसलिए नहीं है कि हमें बहुत अच्छी बारिश मिली है, बल्कि संभवतः इसकी वजह रिवर्स माइग्रेशन है.
देशभर में लगे लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां बंद होने से शहरी केंद्रों में काम करने वाले लाखों प्रवासी मजदूर पैतृक ग्रामीण क्षेत्रों में लौट आए .
डॉ. नारायणमूर्ति के अनुसार, इन लौटे प्रवासियों ने कृषि गतिविधियों में लिप्त हो अभूतपूर्व उत्पादन में योगदान दिया.
उन्होंने कहा, "हमने फसली क्षेत्रों में इस तरह का विस्तार कभी नहीं देखा है. अधिक भूमि के साथ अच्छी बारिश होने के कारण बंपर फसल होगी."
उन्होंने कहा, "भारत सरकार ने अनुमान लगाया है कि मौजूदा कृषि वर्ष में कुल खाद्यान्न उत्पादन 30 करोड़ टन को पार कर जाएगा. लेकिन, मेरे विचार में, अंतिम उत्पादन इससे भी अधिक होगा."
तीन कृषि कानून
पिछले सितंबर में, संसद ने तीन कानूनों - किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अधिनियम, और कृषि वस्तुओं में व्यापार को उदार बनाने के लिए आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता को लागू किया.
एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, "इन सुधारों के साथ, भारतीय किसानों को आखिरकार अपनी उपज को जिसे वे चाहें, जहां वे चाहें और जिस कीमत पर वे चाहें बेचने की आजादी होगी."
हालांकि स्वतंत्र भारत में किसानों के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही थी, उन कानूनों को कड़े प्रतिरोधों का सामना करना पड़ रहा है.
कानूनों को कॉर्पोरेट-हितैषी और किसान-विरोधी करार देते हुए, देश के विभिन्न हिस्सों से, खासकर पंजाब और हरियाणा के लाखों किसानों ने अधिनियमों को पूरी तरह से वापस लेने की मांग करते हुए राष्ट्रीय राजधानी के बाहर डेरा डाल दिया है.
नेशनल सीड एसोसिएशन ऑफ इंडिया के नीति और आउटरीच निदेशक, इंद्र शकर सिंह ने कहा, "दिल्ली के चारों ओर हम जहां देखते हैं वहां दुनिया का सबसे संगठित किसान आंदोलन दिखता है."
उन्होंने कहा, "वर्ष 2020 कृषि क्षेत्र के लिए एक परिवर्तन का क्षण है. क्योंकि, देश में अब जो कुछ भी हो रहा है, वह आने वाले वर्षों के लिए भारत के भाग्य का फैसला करेगा."
2021 में कीमतें गिरने की संभावना
डॉ नारायणमूर्ति ने कहा, "आम तौर पर, कृषि जिंसों की मांग, प्राइस इनेलिस्टिक होती है. इसका मतलब है कि फलों, सब्जियों, आदि की मांग में इसलिए बहुत बदलाव नहीं होगा, क्योंकि कीमतें कम हो गई हैं. बल्कि इस बार अधिक उत्पादन होने के कारण, यह कीमतों को प्रभावित करेगा."
इसमें कोई संदेह नहीं है, यह खबर पिछले छह महीनों में उच्च खाद्य कीमतों से परेशान जनता के लिए एक बड़ी राहत हो सकती है. लेकिन अगर कीमतों में अचानक गिरावट आती है, तो किसानों को एक कच्चा सौदा मिलेगा.
उन्होंने कहा, "सरकार की बदौलत, धान और गेहूं की खरीद में लॉकडाउन के दौरान काफी बढ़ोतरी देखी गई. इसी तरह, सरकार को खाद्यान्न, मोटे अनाज, दलहन और तिलहन की खरीद के लिए गंभीर कदम उठाने चाहिए. अन्यथा, कीमतें दुर्घटनाग्रस्त हो जाएंगी."
(श्रवण नुने)
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