रायपुर: छत्तीसगढ़ में धान खरीदी पर इस बार जमकर सियासत हो रही है. छत्तीसगढ़ सरकार ने इस साल प्रदेश में 85 लाख क्विंटल धान खरीदी का लक्ष्य रखा है साथ ही अपने चुनावी वादे के मुताबिक किसानों को इसका बोनस देने की भी तैयारी है.
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से केन्द्र के पूल का 32 लाख टन चावल खरीदने और बोनस देने की मांग की है. केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार को कहा है कि अगर राज्य सरकार धान खरीदी पर किसानों को बोनस देगी तो केन्द्र सरकार चावल की खरीदी नहीं करेगी.
धान खरीदी पर केंद्र और राज्य बता दें कि पिछले साल तक केन्द्र सरकार छत्तीसगढ़ से अरवा और उसना चावल मिलाकर 24 लाख मीट्रिक टन चावल खरीद रही थी, जिसे इस बार राज्य सरकार 32 लाख मिट्रिक टन करने की मांग कर रही है, लेकिन केन्द्र सरकार ने खरीदी का कोटा बढ़ाने के बजाय खरीदी से ही इनकार कर दिया है.
धान खरीदी पर संग्राम
केंद्र के रवैए के बाद छत्तीसगढ़ की सियासत में उबाल आ गया. कांग्रेस ने इसे किसानों के हित से जुड़ा मुद्दा बताते हुए दिल्ली में जंगी प्रदर्शन का ऐलान कर दिया तो वहीं भाजपा का कहना है कि जब कांग्रेस ने चुनाव में प्रदेश की जनता से 2500 पर क्विंटल की दर से धान खरीदने का वादा किया था तो अब उसे इसे पूरा करना चाहिए इसे केन्द्र के ऊपर नहीं डालना चाहिए. इस बीच मुख्यमंत्री ने दिल्ली में दो केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात की. इस मुलाकात को सीएम ने सकारात्मक बताते हुए केन्द्र सरकार के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन को टाल दिया.
कर्ज लेगी राज्य सरकार
एक तरफ ये पूरी कवायद चल रही है तो दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ सरकार बार-बार किसानों को भरोसा दिला रही है कि सरकार उनका एक-एक दाना धान खरीदेगी. इसके लिए बकायदा कर्ज लेने की तैयारी शुरू कर दी गई. वित्त विभाग के मुताबिक धान खरीदी और बोनस देने में 21 हजार करोड़ का खर्च आएगा. धान खरीदी के लिए मार्कफेड के माध्यम से 15 हजार करोड़ कर्ज लिया जाएगा, जबकि बोनस देने के लिए सरकार 6000 करोड़ कर्ज लेगी. आरबीआई के बजाय सरकार राष्ट्रीयकृत बैंक से कर्ज लेगी, जिससे कम ब्याज पर कर्ज मिल सके.
क्या हुआ रमन सिंह के कार्यकाल में?
राज्य में भाजपा सरकार के दौरान भी केंद्र सरकार से 2017-18 और 2018-19 में चावल खरीदने व बोनस देने की मांग रखी गई थी. उस समय भी केंद्र सरकार ने ज्यादा चावल लेने और बोनस देने से इंकार कर दिया था, लेकिन चुनावी साल में केंद्रीय पूल में चावल की खरीद की थी. इस स्थिति में समर्थन मूल्य के साथ सरकार ने प्रति क्विंटल 300 रुपए बोनस देकर 65 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी की थी. इस पर 7000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ सरकार पर आया था.
ये है तय समर्थन मूल्य
केंद्र सरकार ने कॉमन वेरायटी के धान के लिए 1815 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य और ए-ग्रेड के धान के लिए 1835 रुपये प्रति क्विंटल की दर तय की है. जबकी राज्य सरकार ने वादे के मुताबिक छत्तीसगढ़ के किसानों से 2500 की दर से धान खरीदने का ऐलान किया है. ऐसे में करीब 700 रुपए की बाकी रकम ही विवाद का प्रमुख वजह बनती नजर आ रही है. ऐसे में राज्य सरकार ने धान खरीदी के नियमों को शिथिल करते हुए सेंट्रल पूल की खरीदी में तय सीमा बढ़ाने की मांग की थी. जिसपर केंद्र की तरफ से ये प्रतिक्रिया आई कि 2500 रुपए के मूल्य पर धान खरीदने से बाजार मूल्य पर इसका असर पड़ेगा.
क्या है केन्द्रीय पूल?
केंद्र सरकार ने साल 1997-98 में खाद्यान्नों की विकेन्द्रीकृत खरीद स्कीम की शुरुआत की थी. इसमें उन खाद्यान्नों की खरीद की जाती है, जो स्थानीय तौर पर ज्यादा पसंद किए जाते हैं. इस स्कीम के अंतर्गत राज्य सरकार खुद, भारत सरकार की ओर से धान और गेहूं की सीधे खरीद और लेवी चावल की खरीद करती है और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली और कल्याणकारी योजनाओं के तहत इन खाद्यान्नों के भंडारण और वितरण का काम भी करती है. केन्द्र सरकार, अनुमोदित लागत के अनुसार, राज्य सरकारों द्वारा खरीद कार्यों पर वहन किए गए सभी व्यय को पूरा करती है. केन्द्र सरकार इस स्कीम के अधीन खरीदे गए खाद्यान्नों की गुणवत्ता की मॉनिटरिंग भी करती है.
ऐसे होती है धान खरीदी
प्रदेश में हर साल नवंबर महीने से धान खरीदी की शुरुआत हो जाती है. इस साल बेमौसम बारिश के चलते सरकार 1 दिसंबर से धान खरीदी की शुरुआत करने जा रही है. इस साल 85 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा है. सरकार मंडियों और सहकारी समितियों के जरिए किसानों से धान की खरीदी करती है. खरीदे गए धान को संग्रहण केंद्रों में रखा जाता है, जहां से राइस मिलर्स धान की मिलिंग के लिए धान का उठाव करते हैं. धान खरीदी के साथ ही किसानों को उनकी मेहनत की कमाई सीधे उनके खाते में ट्रांसफर करने की वयवस्था भी सरकार ने बना रखी है.
धान सबसे बड़ा मुद्दा
छत्तीसगढ़ देश का प्रमुख धान उत्पादक राज्य है. इस साल भी बड़े पैमाने पर किसानों ने अपना पंजीयन धान विक्रेता के रूप में करा रखा है. 2018 के चुनाव में भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस ने प्रदेश के किसानों को भरोसा दिलाया था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर प्रदेश के किसानों का धान 2500 रुपए की दर से खरीदा जाएगा. कांग्रेस के इस वादे ने अपना असर दिखाया और प्रचंड बहुमत के साथ कांग्रेस राज्य की सत्ता पर काबिज हुई. लिहाजा सरकार के सामने धान को इसी कीमत पर खरीदने की चुनौती है, लेकिन इसे पूरा करने के लिए सरकार को भारी भरकम कर्ज लेना पड़ेगा. फिलहाल राज्य सरकार उम्मीद लगाए बैठी है कि केंद्र उनकी मांग पर विचार करेगा और चावल खरीदा जाएगा.
ये भी पढ़ें:डेटा गुणवत्ता के मुद्दों के कारण नहीं जारी किया जाना चाहिए उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण: सरकार