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अखबारी कागज पर आयात शुल्क लगाने से घरेलू उद्योग को राहत: वित्त मंत्री

राज्यसभा में वित्त विधेयक 2019 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सस्ता आयात होने की वजह से घरेलू कागज विनिर्माता कंपनियों को उनके उत्पादन के खरीदार नहीं मिल रहे हैं.

अखबारी कागज पर आयात शुल्क लगाने से घरेलू उद्योग को राहत: वित्त मंत्री

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Published : Jul 24, 2019, 2:45 PM IST

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अखबारी कागज पर लगाये गये आयात शुल्क को वापस लेने की मांग मंगलवार को खारिज कर दी. उन्होंने कहा कि आयातित अखबारी कागज पर 10 प्रतिशत सीमा शुल्क से घरेलू कागज उद्योग को कारोबार के समान अवसर उपलब्ध होंगे.

राज्यसभा में वित्त विधेयक 2019 पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सस्ता आयात होने की वजह से घरेलू कागज विनिर्माता कंपनियों को उनके उत्पादन के खरीदार नहीं मिल रहे हैं.

सीतारमण ने कहा, "घरेलू कागज विनिर्माताओं को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिये मूल सीमा शुल्क बढ़ाया गया है. देश में अखबारी कागज उत्पादन की क्षमता है. लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे क्योंकि अखबारी कागज का बड़े पैमाने पर आयात होता है."

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उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में विदेशी बाजारों में अखबारी कागज की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आयी है. इसका दाम 700 डालर प्रति टन से कम होकर 500 डालर प्रति टन पर आ गया. विश्व बाजार में दाम काफी नीचे आने से भारतीय विनिर्माता खरीदार नहीं मिलने से प्रभावित हो रहे थे.

वित्त मंत्री ने कहा, "इसीलिए अगर हम मेक इन इंडिया की बात कर रहे हैं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से आयात की अनुमति दे रहे हैं, इसका कोई मतलब नहीं बनता है. मुझे भरोसा है कि सदस्यगण इस तर्क की सराहना करेंगे कि जब हम भारतीय उद्योग को गति देने की कोशिश कर रहे हैं तो ऐसा कदम जरूरी हो जाता है."

सीतारमण वाईएसआर-कांग्रेस के नेता वी विजयसाई रेड्डी के सवाल का जवाब दे रही थी. रेड्डी ने चर्चा के दौरान कहा था कि शुल्क लगाने से छोटे अखबार प्रभावित होंगे जो पहले से विज्ञापन आय में कमी से जूझ रहे हैं.

इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने इससे पहले सरकार से अखबारों और पत्रिकाओं में उपयोग होने वाले कागज पर 10 प्रतिशत सीमा शुल्क के बजट प्रस्ताव को वापस लेने का आग्रह किया था. उनका कहना था कि समाचार पत्र और पत्रिका के प्रकाशक पहले से ही कई तरह के वित्तीय दबाव को झेल रहे हैं. विज्ञापन आय कम हुई है, लागत बढ़ी है ऊपर से तेजी से फैलते डिजिटल उद्योग से भी पत्र उद्योग पर दबाव बढ़ा है.

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