नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में कहने को सरकार ने उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिया हुआ है, लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों की कमी के चलते अब बच्चों को उर्दू के बजाय दूसरे सब्जेक्ट लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन को कई बार मामले में शिकायत की जा चुकी है. दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर इस बाबत विस्तृत जानकारी मांगी है.
'बच्चों के परिजन लिखित में दें शिकायत'
माइनॉरिटी कमीशन के मुताबिक अगर स्कूलों के प्रिंसिपल लिखित में टीचरों की मांग करें तो शिक्षा निदेशालय वहां टीचर भेजने की पूरी व्यवस्था कर सकता है. बच्चों के परिजनों को भी चाहिए उन्हें दिक्कत आती है तो वह लिखित में कमीशन को भी इसकी शिकायत करें ताकि कोई एक्शन लिया जा सके.
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उर्दू टीचरों के पद पिछले काफी समय से खाली पड़े हुए हैं, हैरत की बात तो यह है कि सरकारी विभाग इस कमी को पूरा करने के बजाए परिजनों पर इस तरह का दबाव बनाते हैं कि किसी भी तरह वह अपने बच्चे का सब्जेक्ट बदलकर दाखिला कराएं.
'शिकायत लगातार मिल रही हैं'
माइनॉरिटी कमीशन के चेयरमैन डॉ.जफरुल इस्लाम खान ने बताया कि उन्हें लगातार इस तरह की शिकायतें मिल रहीं है कि स्कूल में उर्दू टीचर नहीं हैं या फिर प्रिंसिपल परिजनों से बच्चे का सब्जेक्ट बदलवाने के लिए कह रहे हैं.
इस बारे में पूछने पर शिक्षा निदेशक ने दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन से कहा कि अगर स्कूल प्रिंसिपल लिखकर भेज देते हैं तो वह तुरंत ही टीचरों को स्कूल में तैनात कर देंगे. कमीशन को निदेशालय ने यह भी कहा कि उर्दू टीचरों की कमी नहीं है बल्कि उनके पास तो बाकायदा गेस्ट टीचरों की भी एक लंबी फेहरिस्त मौजूद है. बच्चों को अपनी मादरी जुबान में तालीम हासिल करने का पूरा हक है.