हैदराबाद : सात अक्टूबर को घोषित हुई बीजेपी की नई कार्यकारिणी में कई दिग्गजों को जगह नहीं दी गई. सुब्रमण्यम स्वामी, वसुंधरा राजे, विजय गोयल, विनय कटियार जैसे नेता पार्टी की नेशनल इग्जेक्युटिव काउंसिल से बाहर कर दिए गए. मगर चर्चा वरुण गांधी और मेनका गांधी पर टिक गई है. वरुण गांधी के हालिया बयानों और तेवर को देखते हुए यह माना गया कि पार्टी गांधी फैमिली के अपने सदस्यों से खफा है. यह भी माना जा रहा है कि पार्टी में उनका कद लगातार कम किया जा रहा है, जबकि ज्योतिरादित्य और अनुराग ठाकुर को बीजेपी प्रमोट कर रही है.
वरुण गांधी ने पहले किसान आंदोलन पर बीजेपी को नसीहत दी थी, फिर लखीमपुर खीरी की घटना पर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया था. वह किसानों के मुद्दे पर जैसे गन्ना मूल्य और बकाया भुगतान के मसले पर भी लगातार सरकार को चिट्ठी लिखते रहे हैं. अभी वरूण गांधी पीलीभीत और मेनका गांधी सुल्तानपुर से सांसद हैं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मुद्दे पर मेनका गांधी ने प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि हर वर्ष राष्ट्रीय कार्यसमिति बदली जाती है. कार्यसमिति बदलना पार्टी का हक है. मेनका गांधी ने कहा, ''मैं 25 साल से राष्ट्रीय कार्यसमिति में हूं, अगर उसे बदल दिया गया तो कौन सी बड़ी बात है?'' नए लोगों को मौका मिलना चाहिए, इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं है. मगर वरुण गांधी इस बदलाव पर खामोश ही रहे.
गांधी परिवार से मुकाबले के लिए बीजेपी के 'गांधी'
गांधी परिवार की मेनका गांधी 1998 में बीजेपी में आईं. वह पीलीभीत से बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार थीं. इससे पहले वह 1989 और 1996 में वह जनता के टिकट पर भी सांसद चुनी गई थीं. मेनका गांधी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) थीं. मोदी 1.0 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. वरुण गांधी भाजपा में साल 2004 में शामिल हुए थे. तब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में शामिल लालकृष्ण आडवाणी, वैंकेया नायडू, राजनाथ सिंह और प्रमोद महाजन ने उनका वेलकम किया था. बीजेपी को उम्मीद थी कि गांधी ब्रांड का मुकाबला कोई गांधी ही कर सकता है और वरुण इसमें पूरी तरह फिट थे. 2004 में वह औपचारिक तौर से भाजपाई हो गए. वरुण 2009 में पीलीभीत से जीतकर संसद पहुंच गए. मेनका गांधी ने सुल्तानपुर को चुना और विजयी हुईं. इसके बाद हुए आम चुनाव में दोनों बीजेपी के टिकट से लगातार जीत रहे हैं.
क्या बीजेपी में हाशिये पर जा रहे हैं वरुण और मेनका ?
2009 के चुनावों में वरुण गांधी ने ऐसे सार्वजनिक बयान दिए, जो बीजेपी के एजेंडे पर फिट बैठती थी. वह फायर ब्रांड नेता के तौर पर उभरने लगे. इससे पार्टी का एक तबका उनसे नाराज भी हुआ मगर भाजपा वरुण को बढ़ावा देती रही. 2013 में राजनाथ सिंह ने उन्हें बीजेपी का जनरल सेक्रेट्री बनाया. 2014 में जब बीजेपी में अमित शाह और मोदी युग आया तो वरुण का कद घटना शुरू हुआ. पार्टी ने मंत्री पद के लिए वरुण के नाम पर विचार नहीं किया. साथ ही मोदी 2.0 में मेनका गांधी को भी जगह नहीं मिली. बीजेपी कार्यकारिणी से हटाने के बाद यह माना जा रहा है कि पार्टी अपने गांधी के पर कतर रही है.