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दक्षिण अफ्रीका में हिंसा: भारतीयों को क्यों बनाया जा रहा है निशाना ?

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Published : Jul 23, 2021, 4:25 PM IST

Updated : Jul 24, 2021, 3:29 PM IST

दक्षिण अफ्रीका इन दिनों हिंसा की लपटों में घिरा हुआ है. इस हिंसा में कई भारतीय मूल के नागरिक भी मारे गए हैं. सवाल है कि क्या भारतीयों को निशाना बनाना इस हिंसा के पीछे का एक षडयंत्र है या वजह कुछ और है. जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत explainer

दक्षिण अफ्रीका
दक्षिण अफ्रीका

हैदराबाद: दक्षिण अफ्रीका का डरबन क्रिकेट ग्राउंड, यहां भारतीय टीम का मैच भले दक्षिण अफ्रीकी टीम से हो लेकिन ग्राउंड पर भारत के झंडे और टीम इंडिया के समर्थक ही ज्यादा होते हैं. एक बार को एहसास होता है कि मैच कोलकाता के ईडन ग्रार्डंस या फिर मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में हो रहा है.

दरअसल दक्षिण अफ्रीका में 13 से 15 लाख भारतीय रहते हैं, इनमें से ज्यादातर डरबन में रहते हैं. लेकिन कई दशकों से दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीय इन दिनों खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका और खासकर डरबन जैसे इलाकों की तस्वीरों से सोशल मीडिया अटा पड़ा है. इन तस्वीरों को देखकर सबसे ज्यादा खौफजदा भारत में रह रहे वो परिवार हैं जिनके अपने दक्षिण अफ्रीका में रहते हैं.

हिंसा में भारतीय मूल के लोग भी निशाने पर

हिंसा की आग में झुलस रहा है दक्षिण अफ्रीका

कई सालों तक रंगभेद की बेड़ियों में जकड़ा रहा दक्षिण अफ्रीका इन दिनों हिंसा की आग में झुलस रहा है. गौतेंग और क्वाजलु नटाल राज्यों में दंगों में भारतीयों को निशाना बनाया जा रहा है. क्वाजुलु नटाल राज्य का सबसे बड़ा शहर डरबन है, जहां भारतीय मूल के करीब 10 लाख लोग रहते हैं.

उनकी दुकानों में लूटपाट हो रही है और इस दौरान कई लोग मारे भी गए हैं. डरबन में खुदरा दुकानों से लेकर सुपर मार्केट और हेल्थ क्लीनिक से लेकर मोटर डीलरशिप तक भारतीय समुदाय के लोगों द्वारा चलाए जाते हैं. उपद्रवी इन दुकानों में लूटपाट और हिंसा को अंजाम दे रहे हैं. दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने गुरुवार को बताया कि हिंसा में अब तक 337 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें से 258 मौतें क्वाजलु नटाल में हुई हैं जहां भारतीय मूल के सबसे ज्यादा लोग रहते हैं.

शॉपिंग मॉल में लूटपाट और आगजनी की गई

उपद्रवियों ने कई मॉल और दुकानों को आग के हवाले कर दिया. कई दुकानों को लूट लिया गया. पुलिस ने कई लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है और कई लोगों को गिरफ्तार भी किया है.

क्यों हो रही है हिंसा ?

दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा पर अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. 2009 में देश के राष्ट्रपति बने जुमा को इन्हीं आरोपों के बाद 2018 में पद छोड़ना पड़ा था. भ्रष्टाचार के मामलों की जांच शुरू हुई लेकिन जांच की प्रक्रिया के दौरान जुमा कोर्ट के सामने पेश नहीं हुए. जिसके बाद कोर्ट की अवमानना करने पर उन्हें 15 महीने की सजा सुनाई गई.

पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा को सुनाई गई 15 महीने की सजा

29 जून को कोर्ट ने सजा सुनाई और बीती 7 जुलाई को जैकब जुमा की गिरफ्तारी हुई. जिसके बाद उनके समर्थक सड़कों पर उतर आए, जिसने जल्द ही हिंसा का रूप ले लिया. जैकब जुमा की रिहाई को लेकर शुरू हुआ ये प्रदर्शन हिंसक हो गया जिसकी जद में सबसे ज्यादा भारतीय आए हैं. जैकब ज़ुमा मई 2009 से फ़रवरी 2018 तक राष्ट्रपति पद पर रहे. इस दौरान उनके ऊपर पद के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप लगे. ज़ुमा से फायदा पाने वालों की लिस्ट में भारतीय मूल के गुप्ता बंधुओं का नाम भी आया.

जैकब जुमा को रिहा करने की मांग कर रहे हैं समर्थक

भारतीयों को क्यों बनाया जा रहा है निशाना ?

दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोग एक सदी से भी पहले से रह रहे हैं. वहां की अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी निभाने वाले भारतीयों ने रंगभेद का वो दौर भी देखा है जिसके लिए दक्षिण अफ्रीका बदनाम रहा है. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का दौर खत्म होने के बाद ये सबसे बड़ी हिंसा है. लेकिन सवाल है कि इसमें भारतीयों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है ? क्या ये सोची समझी साजिश के तहत हो रहा है ?

जानकार मानते हैं कि डरबन से लेकर गौतेंग और क्वाजलु नटाल तक जिन-जिन इलाकों में हिंसा हो रही है. उन इलाकों में भारतीय मूल के लोग अधिक संख्या में रहते हैं और इन इलाकों में भारतीय मूल के लोगों की दुकानें, शॉपिंग मॉल्स और संस्थान है. ध्यान देने वाली बात ये है कि क्वाजलु नटाल का ये इलाका जैकब जुमा का है, यहां उनके समर्थक रहते हैं. कहा जा रहा है कि ये समर्थक ही उनकी रिहाई की मांग को लेकर उपद्रव मचा रहे हैं.

हिंसा के दौरान दुकानों में लूट और तोड़फोड़ की गई

जानकार मानते हैं कि उपद्रवी जब उन इलाकों में पहुंचे जहां भारतीय मूल के लोग रहते हैं तो उपद्रवियों के निशाने पर भारतीयों की दुकानें और मॉल्स भी आए. जहां लूटपाट हुई और हिंसा के दौरान लोग भी मारे गए. दक्षिण अफ्रीका में भ्रष्टाचार के अलावा बेरोजगारी और आर्थिक असमानता है. गोरे लोग अधिक सुविधा और संसाधन संपन्न है, स्थानीय लोगों के पास बहुत कम संपत्ति और भूमि है. बीते वक्त में अमीर-गरीब की खाई और भी चौड़ी हो गई है. विशेषज्ञ मानते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र आए तीन दशक होने वाले हैं लेकिन इन समस्याओं का हल नहीं हुआ है और यही वजह इस हिंसा की मुख्य वजह है.

क्या नस्लीय भेदभाव या काले-गोरे का भेदभाव भी है?

दक्षिण अफ्रीका ने लंबे वक्त तक रंगभेद का दंश झेला है. डरबन में रह रहे भारतीयों का मानना है कि शुरूआत में भारतीयों पर हमला नहीं हुआ लेकिन जैसे-जैसे उपद्रवी रिहायशी इलाकों में पहुंचने लगे तो भारतीय मूल के लोग और उनकी संपत्ति भी इसकी जद में आई. कुछ लोगों को इसमें नस्लीय भेदभाव भी नजर आता है.

हिंसा की आग में झुलस रहा है दक्षिण अफ्रीका

दरअसल दक्षिण अफ्रीका में सबसे ज्यादा आबादी यहां के स्थानीय काले लोगों की है जबकि गोरे लोग अल्पसंख्यक होने के बावजूद अमीर हैं. दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की आबादी ढाई से 3 फीसदी के बीच है. वैसे तो यहां के स्थानीय और भारतीय मूल के लोगों के रिश्ते अच्छे रहे हैं लेकिन एक तबका भारतीयों को नस्लीय भेदभाव के तराजू में तोलता है और यहां के स्थानीय भारतीयों को भी गोरों की तरह देखते हैं.

कौन हैं गुप्ता बंधु ?

अजय गुप्ता, अतुल गुप्ता और राजेश गुप्ता, यही वो गुप्ता ब्रदर्स हैं, जिनसे जैकब जुमा के भ्रष्टाचार के तार जुड़ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले गुप्ता ब्रदर्स साल 1993 में दक्षिण अफ्रीका का रुख किया था और सबसे पहले सहारा कंप्यूटर्स की स्थापना की. इसके बाद मीडिया से लेकर खनन समेत कई बिजनेस में अपना हाथ आजमाया.

अतुल गुप्ता और अजय गुप्ता

जैकब जुमा गुप्ता ब्रदर्स के करीबी माने जाते हैं. कहा जाता है कि गुप्ता बंधुओं को सरकार से बहुत से लाभ मिले जिसका फायदा उन्हें बिजनेस बढ़ाने में मिला. साल 2016 में अतुल गुप्ता दक्षिण अफ्रीका के सातवें सबसे अमीर शख्स बन गए. जूमा पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान गुप्ता बंधुओं को देश के संसाधनों को लूटने में मदद की और सरकार की नीतियों को प्रभावित किया गया. 2018 में जूमा को राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा तो मौका देखते हुए गुप्ता ब्रदर्स ने देश छोड़ दिया. दक्षिण अफ्रीका में चल रहे कई मुकदमों में उनका नाम है.

हिंसा में गुरुवार पर 327 लोगों की मौत

दोनों देशों की सरकारें क्या कर रही है ?

7 जुलाई को जैकब जुमा की गिरफ्तारी के बाद भड़की हिंसा जुलाई के दूसरे हफ्ते में चरम पर पहुंच गई. जिसके बाद दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने हिंसा ग्रस्त इलाकों में सेना तैनात कर दी. 25 हजार सैनिक प्रभावित इलाकों में भेजे गए जिसके बाद हिंसा पर काबू तो पा लिया लेकिन भारतीय मूल के लोगों में अब भी दहशत का माहौल है.

इस बीच बारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्री नलेदी पंडोर के साथ बातचीत की है. जिसमें दक्षिण अफ्रीका की सरकार की तरफ से कानून-व्यवस्था लागू करने और भारतीयों की सुरक्षा का भरोसा दिया गया है.

दो गांधियों का देश है दक्षिण अफ्रीका

दो गांधियों के देश में हो रही है हिंसा

दक्षिण अफ्रीका वो देश है जिसे भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी कर्मभूमि बनाया था. 1893 में दक्षिण अफ्रीका गए महात्मा गांधी के विचारों की मौजूदगी वहां आज भी है. महात्मा गांधी के इन विचारों को दक्षिण अफ्रीका का गांधी कहे जाने वाले नेल्सन मंडेला ने आगे बढ़ाया था. मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ जंग लड़ी और 27 साल में जेल में रहे और फिर दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र लाए. मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने लेकिन रंगभेद की बेड़िया तोड़कर देश में लोकतंत्र लाने वाले मंडेला का देश हिंसा की लपटों में झुलस रहा है.

ये भी पढ़ें: नेल्सन मंडेला: रंगभेद की बेड़ियां तोड़कर देश का पहला अश्वेत राष्ट्रपति बनने वाला 'गांधी'

Last Updated : Jul 24, 2021, 3:29 PM IST

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