हैदराबाद : क्लीनिकल ट्रायल एक प्रकार का शोध है जो नए परीक्षणों और उपचार का अध्ययन करता है. मानव स्वास्थ्य परिणामों पर उनके प्रभावों का मूल्यांकन करता है. वालंटियर दवाओं का कोशिकाओं और अन्य जैविक उत्पादों, शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं, रेडियोलॉजिकल प्रक्रियाओं, उपकरणों, व्यवहार उपचार और निवारक देखभाल सहित चिकित्सा हस्तक्षेपों का परीक्षण पाने के लिए इस क्लीनिकल ट्रायल में भाग लेते हैं.
यह ट्रायल सावधानीपूर्वक डिजाइन किए गए, समीक्षा किए गए और पूरे किए गए होते हैं. इसको शुरू करने से पहले उन्हें मंजूरी लेने की आवश्यकता होती है. बच्चों सहित सभी उम्र के लोग इन क्लीनिकल ट्रायल में भाग ले सकते हैं.
बायोमेडिकल क्लिनिकल परीक्षण के 4 चरण
- चरण I- इस चरण में एक छोटे समूह के ऊपर नई दवाओं का परीक्षण किया जाता है, जिसमें सुरक्षित खुराक सीमा का मूल्यांकन और दुष्प्रभावों की पहचान की जाती है.
- चरण II- पहले चरण के उपचार में सुरक्षित पाए गए परीक्षण का अध्य्यन करता है, लेकिन परीक्षण के दूसरे प्रतिकूल प्रभावों की निगरानी के लिए मानव के बड़े समूह की आवश्यकता है.
- चरण III- अध्ययन बड़ी आबादी और विभिन्न क्षेत्रों और देशों में आयोजित किए जाते हैं. यह नए उपचार को मंजूरी देने से पहले का कदम है.
- चरण IV- देश में नए उपचार को मंजूरी के बाद इसका अध्य्यन किया जाता है. इस चरण में आगे के समय के लिए ज्यादा आबादी पर इसके परीक्षण की आवश्यकता होती है.
भारत में ड्रग्स और कॉस्मेटिक अधिनियम
दिसंबर 2016 में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1945 में किए गए संशोधन के अनुसार मानव पर क्लीनिकल ट्रायल में होने वाले प्रतिकूल प्रभावों में मुआवजे का भी प्रावधान है. ऐसे में व्यक्ति वित्तीय मुआवजे के लिए भी हकदार होंगे.
डीसीजी ने कहा कि ट्रायल शुरू होने से पहले स्पॉन्सर को लिखित रूप में यह देना होता है कि यदि इस ट्रायल के कोई साइड इफेक्ट होते हैं तो, स्पॉन्सर ही सारे मेडिकल प्रबंधन का खर्च वहन करेगा, वह तुरंत चिकित्सा प्रबंधन प्रदान करने के साथ मुआवजे का भी भुगतान करेगा.
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) वीजी सोमानी ने उन प्रतिभागियों को 12 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिन्होंने क्लिनिकल परीक्षण किया और पिछले तीन वर्षों में गंभीर प्रतिकूल प्रभाव झेला.
क्लीनिकल परीक्षण की रजिस्ट्री
ऑनलाइन सार्वजनिक रिकॉर्ड प्रणाली (CTRI) के सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में ट्रायल के लिए पंजीकरण कराने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि 2015 में 859 पंजीकृत परीक्षण हुए, 2016 में 873, 2017 में 2,516 और 2018 नवंबर तक 3,869 पंजीकरण हुए.