हैदराबाद: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दिनों राम नाम जप रहे हैं. चुनाव यूपी की दहलीज पर खड़े हैं तो केजरीवाल भी भगवान राम के दर्शन के लिए अयोध्या पहुंच गए. मंगलवार 26 अक्टूबर को हनुमान गढ़ी के साथ-साथ राम लला के भी दर्शन किए. इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के लिए एक ऐसा ऐलान किया, जिसके बाद सवाल उठने लगा है कि बिजली, पानी, स्कूल और अस्पताल के नाम पर चुनाव लड़ने वाले अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को राम के नाम की जरूरत क्यों पड़ गई ?
अरविंद केजरीवाल ने क्या ऐलान किया ?
बुधवार को अयोध्या से दिल्ली लौटते ही अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि दिल्ली सरकार की 'मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना' के तहत अब अयोध्या में रामलाल के दर्शन भी होंगे. दरअसल बीते दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में बुजुर्गों के लिए मुफ्त तीर्थ यात्रा का वादा किया था. 100 करोड़ की इस योजना को मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना का नाम दिया गया है.
इस योजना के तहत दिल्ली के सभी ऐसे बुजुर्ग जो खुद यात्रा का खर्चा नहीं उठा सकते उन्हें मुफ्त में कई तीर्थ स्थलों की यात्रा करवाई जाती है और उनकी यात्रा का पूरा खर्च दिल्ली सरकार उठाती है. दिल्ली सरकार की इस योजना के तहत वैष्णो देवी, शिरडी, रामेश्वरम, द्वारकापुरी, हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, वृंदावन जैसे तीर्थ स्थलों के दर्शन करवाए जा रहे हैं. जिसमें अब अयोध्या को भी शामिल कर लिया गया है. हालांकि कोरोना महामारी के कारण फिलहाल यह योजना रुकी हुई है लेकिन मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना को नवंबर में फिर से शुरू किया जा सकता है. केजरीवाल ने ये भी ऐलान किया है कि इसे यूपी में भी लागू किया जाएगा.
अब काम नहीं राम के नाम पर चुनाव लड़ेंगे 'आप' ?
ये सवाल सीधे-सीधे अरविंद केजरीवाल से है. जो लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं तो इसके पीछे आम आदमी का वो काम जिम्मेदार है, जो सीधे-सीधे आम लोगों की मूलभूत जरूरतों से जुड़ा है. आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल दिल्ली में काम के सहारे जीतते रहे हैं, खासकर 2020 का दिल्ली विधानसभा चुनाव पार्टी ने बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर लड़ा था और 2015 विधानसभा चुनाव की तरह ही बंपर बहुमत से सरकार बनी थी.
इसके बाद पंजाब से लेकर गुजरात तक भी अरविंद केजरीवाल दिल्ली सरकार के कामकाज का गुणगान और सरकार बनने पर वही योजनाएं चुनावी राज्यों में लागू करने की घोषणा करते रहे हैं. हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली के बिजली, पानी, मोहल्ला अस्पतालों की चर्चा करते रहे. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि काम के नाम पर चुनाव लड़ने वाले अरविंद केजरीवाल राम का नाम क्यों जप रहे हैं.
'बीजेपी ने किया है मजबूर'
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने बीजेपी पर निशाना साधा है, उनके मुताबिक बीजेपी ने धर्म को सीधे-सीधे राजनीति से जोड़ने का काम किया है. इसकी वजह से अन्य दलों के नेताओं को मतदाताओं से जुड़ने के लिए धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. अल्वी ने ये बयान भले केजरीवाल के अयोध्या दौरे से पहले दिया हो लेकिन सियासी जानकार मानते हैं कि मौजूदा यूपी चुनाव के समीकरण को देखते हुए इसे झुठलाया नहीं जा सकता.
बीजेपी के कारण बदला-बदला सा है यूपी का चुनावी समर ?
उत्तर प्रदेश का चुनाव हमेशा से ही धर्म और जातियों के इर्द गिर्द बुना जाता रहा है. हर सियासी दल अपने-अपने वोट बैंक को साधने में लगा रहा है. बीजेपी पहले से ही हिंदुत्व का झंडा बुलंद करती रही है तो सपा के निशाने पर यादव और मुस्लिम वोट बैंक रहा है, इसी तरह बसपा भी पिछड़ों के वोट के सहारे रही है. यूपी में कांग्रेस भले हाशिये पर नजर आ रही हो लेकिन एक वक्त था जब जात-पात के खेल में उसका कोई सानी नहीं था.
इस अगले साल की शुरुआत में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से पहले सब कुछ बदला-बदला सा है. बसपा से लेकर सपा तक ब्राह्मणों की पूछ हो रही है. ब्राह्मणों के नाम पर सम्मेलन करवाए जा रहे हैं और बीजेपी अपने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर अड़िग है. राम मंदिर की आधारशिला रखने से लेकर धारा 370 हटाने जैसे मुद्दे उसे फ्रंटफुट पर पहुंचा रहे हैं. एक और खास बात ये है कि इस बार कोई भी सियासी दल उस मुस्लिम वोट बैंक के लिए फिक्रमंद नहीं है, जिसे लुभाने के लिए बीते चुनावों में होड़ लगती रही है.
दरअसल धर्म के आधार पर वोट बैंक को बांटे तो यूपी में हिंदू वोट बैंक के आगे मुस्लिम वोट बैंक की कोई बिसात नहीं है. रही बात अगड़ी-पिछड़ी जातियों के वोट बैंक की, तो 2014 का लोकसभा चुनाव हो या 2019 का या फिर 2017 का विधानसभा चुनाव, हर जाति के वोटों ने बीजेपी की झोली भरी है और केंद्र में मोदी सरकार और यूपी में योगी सरकार बनाने में अपनी भूमिका निभाई है. जानकार मानते हैं कि सपा, बसपा, कांग्रेस, आप समेत सभी दलों को लगता है कि अगर वो अल्पसंख्यक या जाति विशेष के वोट बैंक की तरफ जाते हैं तो बीजेपी की जीत की राह आसान हो जाएगी. इसलिये हर कोई बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाना चाहता है.
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बीजेपी डाल-डाल, बाकी दल पात-पात
कुल मिलाकर यूपी चुनाव से पहले हर दल एक ही ध्रुव पर आकर बैठ गया है या यूं कहें की उसी एक राह पर निकल गया है जिसपर बीजेपी चल रही है. बीजेपी से ब्राह्मणों की नाराजगी का मुद्दा उठाकर बसपा से लेकर सपा समेत कई दल ब्राह्मणों के वोट बैंक पर नजरें गढ़ाए बैठे हैं. 2007 में मायावती तिलक, तराजू और तलवार को साथ लेकर सत्ता पर काबिज हुई थी और 2012 में अखिलेश यादव को भी सबका वोट मिला था. इसलिये यूपी के ये दो क्षत्रप सबसे ज्यादा बीजेपी के वोट बैंक को अपने पाले में लाने की जुगत भिड़ा रहे हैं. दोनों दलों ने अपने दलों के बड़े ब्राह्मण चेहरों को इस काम में लगा भी दिया है.
प्रियंका गांधी भी उत्तर प्रदेश में गांव-गांव घूम रही है. गंगा स्नान से लेकर पूजा-पाठ तक किया जा रहा है. राहुल गांधी भी जनेऊधारी पहले ही हो चुके हैं. पार्टी दूसरे दलों की तरह बीजेपी से ब्राह्मणों की नाराजगी का हवाला देकर कुछ वोट बटोरने की सोच रही है. प्रियंका ने महिला कार्ड भी खेल दिया है लेकिन असदुद्दीन ओवैसी को छोड़ दें तो हर दल अल्पसंख्यकों की बात करने से बच रही है. ये सब इसलिये हो रहा है क्योंकि जिस हिंदू वोट बैंक पर सेंधमारी के लिए हर दल ने कमर कस रखी है, मुस्लिम वोट बैंक की बात करके वो सीधे बीजेपी के पाले में चला जाएगा.