नई दिल्ली : यूपी विधानसभा चुनाव अब तीसरे चरण की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में अब भाजपा के सामने अपना पुराना जलवा बरकार रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं सपा भी अपना खोया जनाधार पाने के लिए पिछड़ा और मुस्लिम की सोशल इंजीनियरिंग कर सत्ता पाने के फिराक में है. तीसरे चरण के 16 जिलों हाथरस, फिरोजाबाद, एटा, कासगंज, मैनपुरी, फरुर्खाबाद, कन्नौज, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर व महोबा की 59 विधानसभा सीटों पर वोटिंग 20 फरवरी को होगी. 2017 में भाजपा के पास 59 में से 49 सीटें थीं. सपा के पास 8 तथा बसपा और कांग्रेस को एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा था.
भाजपा ने तीसरे चरण की लड़ाई के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. उसने कई दिग्गजों को यहां उतार रखा है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह की कर्मभूमि भी उरई है. वह कुर्मी समाज के बड़े नेताओं में शुमार हैं. आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में दांव अजमा रहे असीम अरूण भी कन्नौज से चुनाव मैदान में है. साध्वी निरंजन ज्योति के कंधों पर केवट, मल्लाह, कश्यप को साधने की जिम्मेंदारी है. जबकि सुब्रत पाठक मैनपुरी, कन्नौज, इटावा के ब्राम्हण को एकजुट रखना है.
वर्ष 2017 में सपा को यहां से मात्र आठ सीटें सिरसागंज, करहल, मैनपुरी, किषनी, कन्नौज, जसवंत नगर, सीसामऊ, आर्यनगर ही मिल पायी थी. जबकि 2012 में उनके पास यहां से 37 सीटें थी. अखिलेश के सामने खिसके जनाधार को वापस लाने की सबसे बड़ी चुनौती है. बुंदेलखण्ड के जिन इलाकों में चुनाव है वहां तो सपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी.
सपा ने 2017 का चुनाव कांग्रेस गठबंधन के साथ लड़ा था. कुनबे में कलह के कारण सपा को यादव वोटों का काफी नुकसान हुआ था. वहीं बसपा की ओर से मुस्लिम उम्मीदवार उतारने से सपा का मुस्लिम वोट बैंक भी बंट गया था. भाजपा को गैर यादव, शाक्य, लोधी वोटर एकमुश्त मिला था. लेकिन इस बार सपा ने इस बार मुस्लिम और यादव वोट बैंक के साथ अन्य पिछड़ा पर अखिलेश ने जबरदस्त अपने पाले में लाने का प्रयास किया है. अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल को भी सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ाकर यादव वोट को बिखराव करने से रोकने का बड़ा प्रयास किया है.