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U19W T20 World Cup 2023 : जानिए अर्चना देवी की मां की कहानी, पति और बेटे की मौत के बाद बनाया क्रिकेटर

उत्तर प्रदेश में उन्नाव की अंडर 19 की खिलाड़ी अर्चना देवी ने अंडर-19 महिला टी20 विश्व कप फाइनल में इंग्लैंड को हराने में अहम भूमिका निभाई है. काफी संघर्षो और मां की जिद के बाद अर्चना ने इस सफलता को हासिल किया है. आइए विस्तार से क्रिकेटर अर्चना देवी और उनकी मां के बारे में जानते हैं..

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Published : Jan 30, 2023, 10:09 AM IST

उन्नावः बांगरमऊ तहसील क्षेत्र में गंगा किनारे खेलकर बचपन बिताने वाली अंडर 19 की खिलाड़ी अर्चना देवी आज कोई पहचान की मोहताज नहीं रही हैं. अर्चना जब दाहिने हाथ की तेज गेंदबाज बनकर उभर कर भारतीय अंडर-19 महिला क्रिकेटर के रूप में सामने आई, तब इस उन्नाव की बेटी को देख सभी अचंभे में पड़ गए. अंडर-19 महिला टी20 विश्व कप फाइनल में रविवार को इंग्लैंड को टीम इंडिया ने हराकर इतिहास रच दिया. इंग्लैंड की टीम 68 रन पर ऑल आउट हो गई. भारत ने 3 विकेट खोकर लक्ष्य हासिल कर लिया. इस शानदार जीत की नींव उन्नाव की अर्चना देवी ने रखी. उन्होंने ग्रेस स्क्रिवेंस और नियाह हॉलैंड को आउट करके शानदार शुरुआत दिलाई.

क्रिकेट की दीवानी बेटी ने उन्नाव का नाम किया रोशन
बता दें कि उन्नाव जिले के रतई पुरवा गांव की रहने वाली अर्चना की इस सफलता के पीछे उनकी जिद्दी मां सावित्री देवी का हाथ है, जिन्हें न जाने बेटी को क्रिकेट की दुनिया मे आगे बढ़ाने के लिए कितने ताने सुनने पड़े. कैंसर से सावित्री के पति और बेटे की सांप काटने से मौत हो गई. घर में दो परिजनों की मौत के बाद सावित्री अंदर से तो टूट गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. जिस समय सावित्री को लोगों की हेल्प की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उस समय गांव के ही लोग उन्हें डायन कहने लगे.

यही नहीं सावित्री ने अर्चना को क्रिकेटर बनाने का फैसला किया, तो उनके रिश्तेदारों ने कहा कि व अपनी बेटी को गलत रास्ते पर भेज रही हैं. इससे सावित्री देवी को फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने क्रिकेट की दीवानी बेटी को गांव से 345 किलोमीटर दूर मुरादाबाद में लड़कियों के बोर्डिंग स्कूल कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में एडमिशन करवाया. ऐसा करने के बाद आस पड़ोस के लोगों ने उन्हें अपनी बेटी को गलत धंधे में डालने का आरोप लगाते हुए और ताने मारने लगे, लेकिन सावित्री अडिग रहीं और किसी की बिल्कुल भी नहीं सुनी. वह सिर्फ अपनी बेटी को एक अच्छे क्रिकेट के खिलाड़ी के रूप में देखना चाहती थी.

बेटी को लेकर लोगों ने कहीं कई बुरी-बुरी बातें
सावित्री ने बताया कि 'जैसे ही आगे बढ़ाने की कोशिश की तो लोग कहने लगे कि उन्होंने अपनी लड़की को बेच दिया है. लड़की को गलत धंधे में डाल दिया है. ये सारी बातें गांव व आसपास पड़ोस के लोग मेरे मुंह पर बोलते थे'.

घर में मेहमानों की बढ़ती संख्या से नहीं पूरे हो रहे हैं बिस्तर
वहीं, अर्चना देवी की मां ने बताया कि 'अर्चना की सफलता के बाद सबका व्यवहार मेरे परिवार व मुझको लेकर बदल गया है. अब मेरा घर मेहमानों से भरा हुआ है और मेरे पास उनके लिए पर्याप्त कंबल व बिस्तर नहीं हैं, जिसे वह अपने रिश्तेदारों को तन ढकने व लेटने के लिए दें सकें. वे पड़ोसी, जिन्होंने कभी मेरे घर का एक ग्लास पानी नहीं पिया, अब मेरी मदद कर रहे हैं. मेरी हर बात मानने को तैयार हैं'.

कैंसर से पति व सांप काटने से बेटे को खोया
अर्चना के पिता शिवराम की 2008 में कैंसर के कारण मृत्यु हो गई थी. परिवार पर बहुत सारा कर्ज था. मां सावित्री पर तीन छोटे बच्चों को पालने की जिम्मेदारी थी. 2017 में उनके छोटे बेटे बुद्धिमान सिंह की सांप काटने से मौत हो गई थी. पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने तब भी उन्हें नहीं बख्शा. अर्चना के बड़े भाई रोहित कुमार ने बताया कि 'मेरी मां को गांव वाले डायन बताते थे. कहते थे पहले अपने पति को खा गयी, फिर अपने बेटे को. उन्होंने बताया कि लोग मेरी मां को देखकर रास्ता बदल लेते थे. मेरे घर को डायन का घर कहा जाता था'.

भाई की नौकरी चले जाने के बाद हुई थी काफी परेशानी
मार्च 2022 में पहले लॉकडाउन के दौरान नई दिल्ली में कापसहेड़ा बॉर्डर की एक कपड़े की फैक्ट्री में रोहित की नौकरी चली गई. वह बताते हैं कि उनकी मां को अपने बच्चों को पालने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा के वे हर साल बाढ़ का सामना करते हैं. आधा समय खेत गंगा नदी के पानी से भरा रहता है. वे लोग अपनी गाय और भैंस के दूध पर निर्भर थे.

अर्चना को बहुत बड़ा क्रिकेटर बनाना चाहता था बुद्धिमान
जीवन में इतना सब कुछ झेलने के बाद भी सावित्री देवी आगे बढ़ती रहीं. वह हर हाल में अपने मृतक बेटे की आखिरी इच्छा पूरा करना चाहती थी. उसने अर्चना को अपने सपना पूरा करने देने को कहा था. रोहित ने बताया कि 'महज एक साल बड़े बुद्धिमान के साथ क्रिकेट खेलती थी. उसने एक शॉट मारा और गेंद एक निर्माणाधीन कमरे में चली गई, जिसे हमने पिता के मरने के बाद नहीं बनाया. वह हर बार गेंद को मलबे से बाहर निकालने के लिए बल्ले का इस्तेमाल करते था. इस बार उसने अपने हाथों का इस्तेमाल किया और एक कोबरा ने काट लिया. अस्पताल ले जाते समय मेरी बांहों में उसकी मौत हो गई. उसके अंतिम शब्द थे 'अर्चना को क्रिकेट खिलाओ'. बुधिमान की मृत्यु के बाद जब वह वापस अपने स्कूल गई, तो उसने क्रिकेट को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया और मेरी मां ने उसे कभी नहीं रोका'.

अर्चना की मां सावित्री का कहना है कि 'हमारे गांव में कल बिजली की कोई गारंटी नहीं है. इसलिए मैंने इन्वर्टर खरीदने के लिए पैसे इकट्ठे किए हैं. मेरी बेटी विश्व कप फाइनल खेलने वाली टीम में है और हम बिना किसी रुकावट के अपने मोबाइल फोन पर मैच देखना चाहते हैं. अर्चना की मां ने बताया कि 'पिता के स्वर्गवास के बाद बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उन्होंने बड़ी मेहनत मशक्कत करके की है. डेढ़ बीघा जमीन में फसल उगाकर और घर में पली भैंस का दूध बेचकर उन्होंने बच्चों को बड़ा किया है'.

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