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कोविड संकट ने कुलियों की जिंदगी भी कर दी है बेपटरी

मार्च 2020 में लॉकडाउन के बाद ट्रेनें भले ही पटरी पर लौट स सकी हैं लेकिन काम करने कुलियों की जिंदगी दोबारा पटरी पर नहीं लौट पाई है. 2021 अप्रैल में लॉकडाउन ने उनकी आजीविका पर मानो ब्रेक मार दिया और उनके सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है.

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Published : Apr 29, 2021, 12:55 AM IST

The life
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श्रीनगर : भारत के मध्य वर्ग के बीच अपनी लाल शर्ट और तांबे के मेहराबों के साथ कूली की स्मृति में जेहन में बसी है. ज्यादातर पुरुषों का यह समूह जो अपने सिर और कंधों पर भारी बैग ले जाते हैं और प्लेटफार्म की खड़ी सीढ़ियों पर तेजी से चढ़ जाते है. भीड़-भाड़ वाले स्टेशन काम करने वाला यह समूह गरीबी और भुखमरी के कगार पर है.

जम्मू-तवी रेलवे स्टेशन पर रेलवे कुली जोगिंदर शर्मा ने बताया कि उन्होंने पूरे 40 वर्षों में कभी भी कुली का ऐसा रुप नहीं देखा है. 60 वर्षीय शर्मा अपने परिवार के साथ जम्मू तवी रेलवे स्टेशन के पास किराए के कमरे में रहते हैं. वे चार दशकों से कुली का काम कर रहे हैं. जम्मू तवी रेलवे स्टेशन के बाहर कई पोर्टर्स ने कहा कि उन्होंने एक रुपया नहीं कमाया है क्योंकि मार्च 2020 को ट्रेनों को रोक दिया गया.

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अब फिर से 2021 में कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए फिर से ट्रेनें रोक दी गई हैं. हालांकि कई पोर्टर्स ने अपने पैसे से सैनिटाइटर और दस्ताने खरीदे हैं लेकिन कोविड के खतरे का डर लोगों में बना रहता है और सबसे दूर रखता है. कई यात्रियों के पास अपने पहिये वाले बैग होते हैं जिसने एक कुली का काम निरर्थक बना दिया है.

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