नई दिल्ली : सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने गुरुवार को कहा कि अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला चाहे जो भी हो, ऐतिहासिक होगा. इससे जम्मू-कश्मीर के निवासियों के मन में मौजूद मनोवैज्ञानिक द्वंद्व खत्म हो जाएगा. केंद्र की ओर से दलीलें शुरू करते हुए मेहता ने कहा, 'हालांकि संविधान की स्थापना के बाद से यह (जम्मू और कश्मीर) भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा बन गया़ है, एक मनोवैज्ञानिक द्वंद्व हमेशा बना रहा - चाहे प्रेरित हो या अन्यथा. निर्णय किसी भी दिशा में जाए, वह स्थिति समाप्त हो जाएगी.'
उन्होंने कहा कि यह मनोवैज्ञानिक द्वंद्व अनुच्छेद 370 की प्रकृति से उत्पन्न भ्रम के कारण बना कि विशेष प्रावधान अस्थायी या स्थायी था. केंद्र की कार्रवाई का बचाव करते हुए, शीर्ष कानून अधिकारी ने कहा कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के लोगों के विकास में बाधा के रूप में कार्य करता है क्योंकि वे केंद्र सरकार से मिलने वाली कल्याणकारी योजनाओं और संवैधानिक अधिकारों से वंचित थे.
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को बड़ी संख्या में मौलिक अधिकार और अन्य अधिकार प्रदान किए जाएंगे. मेहता ने कहा, 'वे अब पूरी तरह से शेष भारत का हिस्सा होंगे.' उन्होंने कहा कि घाटी के लोग पिछले 75 वर्षों से अपने विशेषाधिकारों से वंचित थे. उन्होंने संविधान पीठ को बताया, 'जम्मू-कश्मीर के निवासियों को अब बड़ी संख्या में मौलिक अधिकार और अन्य अधिकार प्रदान किए जाएंगे, जो पूरी तरह से देश के बाकी हिस्सों के बराबर होंगे.'
एसजी मेहता ने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्क पर सवाल उठाया कि जम्मू-कश्मीर एकमात्र राज्य था जिसके पास 1939 में अपना संविधान था और इसलिए, उसे विशेष उपचार मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह तर्क तथ्यात्मक रूप से ठीक से स्थापित नहीं है. उन्होंने कहा, '62 राज्य ऐसे थे जिनके पास अपने स्वयं के संविधान थे - चाहे उन्हें संविधान या आंतरिक शासन के साधन के रूप में नामित किया गया हो.' उन्होंने कहा कि अन्य 286 राज्य 1930 के दशक के अंत में अपने संविधान बनाने की प्रक्रिया में थे.