शिवलिंग पर चढ़ा दूध नाली में नहीं बहता आगरा:सावन माह बेहद पावन और पवित्र है. इस माह में शिव की आराधना के लिए शिव मंदिरों में भक्तों की खूब भीड़ उमड़ती है. श्रद्धालु शिवलिंग पर दूध, दही और जल से अभिषेक कर पूजा-अर्चना करते हैं. अधिकतर मंदिरों के शिवलिंग पर चढ़ाए गए दूध, दही के साथ अन्य तरल पदार्थ नाली में बहकर बेकार हो जाते हैं. लेकिन जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां जहां रुद्राभिषेक और दुग्धाभिषेक का दूध नाली में नहीं जाता है. बल्कि, गरीब और जरुरतमंदों के बच्चे पीते हैं.
आगरा का श्रीमनकामेश्वर मंदिर मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान शिव शंकर ने मनोकामना पूरी होने पर आगरा में शिवलिंग की स्थापना की थी, जिसे श्रीमनकामेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. श्रीमनकामेश्वर मंदिर में सावन माह के हर सोमवार और विशेष तिथि पर 100 से 150 लीटर दूध से शिवलिंग का दुग्धाभिषेक होता है. इस दूध को मंदिर प्रशासन एक पात्र में एकत्रित कर लेता है. इसके बाद दूध को छान कर गरम कर लिया जाता है. फिर मंदिर प्रशासन इस दूध को बच्चों में वितरित कर देता है. कभी दानदाताओं की मदद से इस दूध की खीर बनाकर गरीब परिवार, बच्चों, अनाथालय, कुष्ठ आश्रम और धर्मशाला में बांटी जाती है. इसके लिए मंदिर प्रशासन सावन माह में विशेष इंतजाम करता है. जिससे शिवलिंग पर अर्पण किया गया, दूध बर्बाद नहीं होता और न ही नाली में बहता है.
शिवलिंग पर चढ़ा दूध पीते बच्चे
द्वापर युग में आए थे भगवान शिव:श्रीमनःकामेश्वर मंदिर के महंत योगेश पुरी बताते हैं कि मथुरा में जब भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तो उनके बाल रूप के दर्शन की कामना लेकर कैलाश से भगवान शिव आगरा चले आए. तब उन्होंने यमुना किनारे पर स्थित श्मशान में विश्राम और साधना की. तब उन्होंने मनोकामना की अगर वह नन्हे कान्हा को अपनी गोद में खिला पाए तो यहां एक शिवलिंग की स्थापना करेंगे. इसके लिए अगले दिन बाबा महादेव यहां से ब्रज में गए. जब महादेव गोकुल पहुंचे तो यशोदा मैया ने भस्म भभूत और जटा जूटधारी रूप को देखकर उनको कान्हा को देने से मना कर दिया. मैया यशोदा को भ्रम हुआ कि ऐसे साधु को देखकर नन्हा कान्हा डर जाएगा. इसके बाद बाबा महादेव वहीं एक बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठ गए. यह देखकर कन्हैया ने लीला शुरू कर दी. उन्होंने रोना शुरू कर दिया. माता यशोदा ने कान्हा को चुप कराने के लिए टोना और टोटका और तमान उपाय किए. लेकिन कान्हा ने रोना बंद नहीं किया. इस पर यशोदा माई ने भगवान शिव को बुला लिए. इस पर भगवान शिव ने कहा कि मां मेरी गोद में कान्हा तो दो. इस पर जैसे मां यशोदा ने भगवान शिव की गोद में कान्हा को दिया वैसे ही उन्होंने रोना बंद कर दिया और शांत होकर खेलने लगे.
शिवलिंग पर चढ़ा दूध बच्चों को बांटते हुए पुजारी. बाबा महादेव ने तब शिवलिंग की स्थापना की:महंत हरिहर पुरी आगे बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप के दर्शन करने के बाद भगवान शिव वापस लौटे तो यहां आकर अपनी मनोकामना पूरी होने पर शिवलिंग की स्थापना की. जिस तरह से यहां मेरे मन की कामना पूरी हुई है. उसी तरह से सच्चे मन से यहां आने वाले मेरे हर भक्त की मनोकामना पूरी होगी. चांदी के आवरण के नीचे शिवलिंग है, जो बाबा ने स्थापित किया था. श्रीमनःकामेश्वर मंदिर के महंत हरिहर पुरी बताते हैं कि सन 1980 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई की एक टीम मंदिर के शिवलिंग की जांच करने के लिए आई थी. तब टीम ने कहा था कि मंदिर करीब पांच हजार साल पुराना है.
सावन में शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक करते पुजारी. गौशाला और आश्रमों में बांटते हैं दूध: महंत योगेश पुरी ने बताया कि वैसे तो हर माह में मंदिर में दूध की सेवा रहती है. लेकिन, सावन माह में दूध की अधिकता आ जात है. हर भक्त या दर्शनार्थी दूध भगवान शिव पर चढाता है. इसमें करीब 100 से 150 लीटर दूध एकत्रित हो जाता है. इस दूध को मंदिर प्रशासन जरूरतमंदों को पहुंचाते हैं. प्रेमदान आश्रम है, जहां दिव्यांग रहते हैं. उन्हें दूध भेजते हैं. वहां पर पुरुष और महिलाएं भी हैं. इसके साथ ही कुष्ठ आश्रम है. स्ट्रीट गर्ल्स काॅलोनी में दो तीन परिवार हैं. इनकी दस से 12 बच्चियां हैं. वहां पर दूध का वितरण करते हैं. इसके अलावा स्टेडियम में भी दूध का वितरण कराते हैं. जिससे खिलाडियों को दूध मिले. इसके साथ ही गांव दिगनेर में भी बाबा पर चढ़ा हुआ दूध चरणामृत के स्वरूप में पहुंचाते हैं. जिससे भगवान का प्रसाद ज्यादा से ज्यादा लोगों के घर तक पहुंच जाता है. उनके मुंह तक पहुंचे. बाबा का प्रसाद से उनके घर में कृपा होगी. इससे हमारा समाज एक सभ्य समाज और व्यवस्थित समाज के रूप में बनेगा.
भगवान शिव ने खुद की थी शिवलिंग की स्थापना. दूध के साथ खीर भी बांटते हैं:योगेश पुरी बताते हैं कि बाबा पर चढा दूध वस्त्र लगाकर छाना जाता है. इसके बाद उसे उबाला जाता है फिर बंटवाया जाता है. कई बार ऐसा होता है कि कोई हमें चीनी, चावल और पंच मेवा दे देते हैं तो उससे खीर बन जाती है. उसे भी वितरित किया जा सकता है. इसके साथ ही समय-समय पर मंदिर प्रशासन की ओर से गांव जगनेर में निशुल्क स्वास्थ्य शिविर लगाया जाता है. जिसमें विशेषज्ञ डॉक्टर के परामर्श के साथ ही लोगों को दवाएं भी निशुल्क प्रदान की जाती है.
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