नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि विस्थापित कश्मीरी सरकारी कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद तीन साल से अधिक समय तक सरकारी आवास अपने पास नहीं रख सकते. सामाजिक या आर्थिक मानदंडों के आधार पर उन्हें अनिश्चित काल तक सरकारी आवास में रहने की अनुमति देने का कोई औचित्य नहीं हो सकता.
न्यायालय ने कहा कि तीन साल की अवधि उन अधिकारियों पर भी लागू होगी जो सक्रिय खुफिया कार्य में थे ताकि वे सामान्य जीवन में लौट सकें, लेकिन खुफिया एजेंसी के लिए काम करने का बहाना अनिश्चितकाल की अवधि के लिए सरकारी आवास रखने का आधार नहीं हो सकता.
शीर्ष न्यायालय ने केंद्र की इस दलील का जिक्र किया कि संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने से कश्मीरी प्रवासियों ने कश्मीर घाटी लौटना शुरू कर दिया है और उनमें से 2000 के इस साल लौटने की संभावना है.
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों की तीन याचिकाओं को रद्द करते हुए इस बात का जिक्र किया कि दिल्ली में 80 कश्मीरी प्रवासी, जो कि सेवानिवृत्त हैं, सरकारी आवास रखे हुए हैं. तीन ऐसे सेवानिवृत कर्मचारी हरियाणा के फरीदाबाद में आवास रखे हुए हैं.
बता दें कि घाटी में जम्मू-कश्मीर सरकार में कार्यरत 6,000 कश्मीरी प्रवासियों को आवास प्रदान करने के लिए, कश्मीर घाटी के विभिन्न जिलों में 920 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कश्मीरी प्रवासी कर्मचारियों के लिए 6000 ट्रांजिट आवास इकाई का निर्माण किया जा रहा है. अब तक, 1025 आवासीय इकाइयों का निर्माण किया जा चुका है, जिसमें बडगाम, कुलगाम, कुपवाड़ा, अनंतनाग और पुलवामा जिले में 721 आवासीय इकाइयां शामिल हैं. अन्य 1488 इकाइयां निर्माणाधीन हैं और लगभग 2444 इकाइयों के लिए भूमि की पहचान की गई है.