नई दिल्ली : देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेद होने के बावजूद उन्हें 'भारत रत्न' प्रदान किया था और इस फैसले की पूरी जिम्मेदारी भी स्वीकार की थी. हाल ही में प्रकाशित एक पुस्तक में यह कहा गया है.
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई की पुस्तक 'भारत के प्रधानमंत्री: देश, दशा, दिशा' में इस बात का भी उल्लेख किया गया कि जिन दोनों राष्ट्रपतियों राजेंद्र प्रसाद और वी वी गिरि ने क्रमश: नेहरू और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद पर रहने के दौरान 'भारत रत्न' दिया था, उन्हें भी पद से हटने के बाद नेहरू एवं इंदिरा की सरकार में ही देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान किया गया.
'राजकमल प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में कहा गया है कि 1955 में जब नेहरू को 'भारत रत्न' देने की घोषणा की गई तो वह यूरोप के आधिकारिक दौरे पर थे. उस दौरान उन्होंने भारत के राजनयिकों को संबोधित किया था और वियना में ऑस्ट्रिया के चांसलर जूलियस राब के साथ मुलाकात की थी.
पत्रकार ने लिखा है, 'कला, साहित्य और विज्ञान के उत्थान तथा सार्वजनिक सेवाओं में उच्चतम प्रतिमान स्थापित करने वालों के लिए स्थापित किए गए भारतरत्न सम्मान का यह द्वितीय वर्ष था. भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश के तहत इसे कायम किया गया था. सबसे पहले 1954 में सी राजगोपालाचारी, सीवी रमन और एस राधाकृष्णन को प्रदान किया गया था.'
पुस्तक में दावा किया गया है, 'तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के संबंध उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से ठीक नहीं थे. दोनों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे. इसके बावजूद प्रसाद ने नेहरू को 'भारत रत्न' प्रदान करने की पूर्ण जिम्मेदारी स्वीकार की.'
इस पुस्तक के अनुसार, '15 जुलाई, 1955 को इस बाबत प्रसाद ने कहा - यह कदम मैंने स्व-विवेक से, अपने प्रधानमंत्री की अनुशंसा के बगैर व उनसे किसी सलाह के बिना उठाया है, इसलिए एक बार कहा जा सकता है कि यह निर्णय अवैधानिक है, लेकिन मैं जानता हूं कि मेरे इस फैसले का स्वागत पूरे उत्साह से किया जाएगा.'
नेहरू के साथ ही दार्शनिक भगवानदास व टेक्नोक्रेट एम विश्वेश्वरैया को भी भारतरत्न से विभूषित किया गया था. पुस्तक में कहा गया है, '7 सितम्बर, 1955 को विशेष रूप से निमंत्रित प्रतिष्ठित भद्रजनों के बीच एक समारोह में नेहरू को भारत रत्न से विभूषित किया गया. राष्ट्रपति भवन में आयोजित इस सम्मान समारोह में तत्कालीन केन्द्रीय गृह सचिव एवी पाई ने सम्मान पाने वाली विभूतियों के नाम पुकारे, लेकिन नेहरू का प्रशस्ति-पत्र नहीं पढ़ा गया.'