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दहेज प्रताड़ना मामले में 36 साल बाद हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला...यह दिया आदेश

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Published : Oct 14, 2022, 6:35 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और पत्नी को आत्महत्या (ruled after 36 years in case of dowry harassment) के लिए उकसाने के मामले में 36 साल बाद फैसला सुनाया है. कोर्ट ने पति को निचली अदालत से मिली सजा को पूर्व में भुगती हुई एक साल की अवधि तक कम कर दिया है.

Rajasthan High Court, Rajasthan High Court has ruled
36 साल बाद हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला.

जयपुर.राजस्थान हाईकोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और पत्नी को आत्महत्या के लिए (ruled after 36 years in case of dowry harassment) उकसाने के मामले में 36 साल बाद फैसला सुनाया है. अदालत ने अभियुक्त पति को निचली अदालत से मिली आठ साल की सजा को पूर्व में भुगती हुई एक साल की अवधि तक कम कर दिया है. जस्टिस नरेन्द्र सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश बनवारी माली की अपील पर दिए.

अदालत ने कहा कि अपीलार्थी पिछले करीब चार दशक से अदालत में ट्रायल का सामना कर रहा है और पूर्व में वह एक साल की सजा भी काट चुका है. ऐसे में निचली अदालत की ओर से उसे दी गई आठ साल की सजा को सात साल कम करना उचित है. अपील में अधिवक्ता मोहित बलवदा और अधिवक्ता भावना चौधरी ने अदालत को बताया कि अपीलार्थी का 28 फरवरी 1981 को विवाह हुआ था. उसकी पत्नी की मौत के बाद उसके पिता ने 21 अगस्त 1983 को कोतवाली थाने में मृतका के ससुराल वालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया था.

पढ़ेंः कोर्ट सुनवाई : दहेज प्रताड़ना के आरोपी एसआई पति, ससुर और ननदों को सजा

निचली अदालत ने दहेज प्रताड़ना और आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अपीलार्थी को आठ साल की सजा सुनाई थी. इस आदेश के खिलाफ वर्ष 1986 में अपील पेश की गई. अपील में कहा गया कि निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष के गवाहों का विधि सम्मत परीक्षण नहीं किया. इसके अलावा एफआईआर में भी अपीलार्थी पर कोई आरोप नहीं है. एफआईआर में सिर्फ ससुराल वाले लिखाया गया था. इसके अलावा हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट से यह साबित नहीं है कि मौत से पहले लिखा गया लेटर मृतका ने लिखा हो.

इसके अलावा एक गवाह के बयान से साबित है कि उसने शादी के समय किसी तरह के दहेज की मांग नहीं की, लेकिन निचली अदालत ने इस गवाह के बयान पर विचार नहीं किया. इसके साथ ही अपीलार्थी एक साल की सजा भुगत चुका है और लंबे समय से मुकदमें का सामने कर रहा है. ऐसे में उसकी सजा को कम कर भुगती सजा के बराबर किया जाए. सरकारी वकील ने कहा कि निचली अदालत का आदेश सही है. इसलिए अपील को खारिज किया जाए. दोनों पक्षों को सुनकर अदालत में अपीलार्थी की सजा को कम कर भुगती हुई सजा के बराबर कर दिया है.

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