क्या कहते हैं जानकार, सुनिए... जयपुर.राजस्थान में परिवर्तन संकल्प जनसभाके दौरान सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से ज्यादा मंच पर मौजूद नेताओं की भूमिका को लेकर चर्चाओं का दौर, प्रदेश के सियासी हलकों में बरकरार है. इस लिहाज से समझा जाए तो इशारा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ओर जाता है. आने वाले चुनाव में जिनकी भूमिका पर न सिर्फ बीजेपी कार्यकर्ताओं की नजर में है, बल्कि विपक्ष की रणनीति के लिहाज से भी अहम हो सकती है.
पीएम मोदी ही बीजेपी का चेहरा : राजस्थान के राजनीतिक दलों की अंदरूनी गुटबाजी से ज्यादा अहम मुद्दा फिलहाल इस बात का है कि किस नेता को आलाकमान प्रदेश में चुनावी चेहरा बनाकर पेश करने वाला है. हालांकि, कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथ चुनावी कमान है, पर बीजेपी में इस बात को लेकर प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी की ताजपोशी के साथ ही पैगाम मिल गया था कि इस बार पीएम मोदी ही बीजेपी का चेहरा होंगे. इसके साथ ही केन्द्र सरकार का कामकाज ही चुनाव लड़ने का आधार होगा. ऐसे में 'सीएम इन वेटिंग' की कतार में खड़े नेताओं के सियासी भविष्य की चर्चाओं पर पीएम मोदी की सभा ने ब्रेक लगाने की जगह अटकलों को तेज कर दिया है.
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भविष्य की राजनीति पर सवाल खड़े किए : वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा के मुताबिक राज्य की राजनीति में दो दशक तक सिरमौर रहने के बाद मौजूदा वक्त राजे के लिए सियासी संकट का है. इसके साथ ही सोमवार को पीएम के मंच की तस्वीर ने भविष्य की राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि यह चुनौती अकेली वसुंधरा राजे के लिए नहीं है, बल्कि उनके समर्थकों के लिए भी है. बीते दिनों जयपुर में नारी शक्ति पर आधारित कार्यक्रम के दौरान शक्ति प्रदर्शन और एक कार्यक्रम में द्रौपदी चीरहरण का उदाहरण देकर राजे ने राजनीति के मौजूदा दौरे में उनकी भूमिका को लेकर तस्वीर साफ करने की कोशिश की थी.
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कमल निशान को प्रमुखता एक संकेत :प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषण में भाजपा के चुनाव चिन्ह कमल निशान को प्राथमिकता देने का आह्वान कार्यकर्ताओं से किया था. माना जा रहा है कि पीएम मोदी ने इशारे-इशारे में इस बात का संकेत दिया था कि राजस्थान में आने वाले चुनाव के लिए बीजेपी किसी एक चेहरे को आधार नहीं बनाने वाली है और पार्टी अपने फैसले में पहले वाले रुख पर ही कायम है. इस लिहाज से पूर्व सीएम राजे को लेकर लगाए जा रहे कयास भी अब ठहर चुके हैं. यही वजह रही कि प्रदेश के चार हिस्सों से शुरू हुई परिवर्तन यात्रा में प्रभारी के रूप में जिम्मेदारी संभालने वाले नेताओं के साथ केन्द्र से भेजे गए लीडर्स ने बराबर की भूमिका निभाई, ताकि किसी एक नेता के कद को ऊपर न समझा जाए. करीब आधे घंटे दिए भाषण में पीएम मोदी ने एक बार भी पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कामकाज पर बात नहीं की, जब राज्य में सूबे की मुखिया के रूप में राजे के हाथों में कमान थी.
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सीपी जोशी को कैडर का लाभ :भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी को राज्य के मुखिया के तौर पर पीएम के दौरे पर मिली प्राथमिकता ने भी राजे के स्थान को लेकर सवाल खड़े कर दिए. जोशी ने न सिर्फ पीएम मोदी से ठीक पहले अपना भाषण दिया, बल्कि हेलीपैड से सभास्थल तक आने वाले रथ में सारथी बनकर प्रदेश के एक मात्र नेता के रूप में पीएम मोदी के साथ नजर आए. जोशी के कैडर को तवज्जो देकर पार्टी के मुख्य स्तंभ के रूप में देखी जाने वाली पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की जगह का सवाल यहां भी खड़ा हुआ. इससे पहले माना जा रहा था कि वसुंधरा राजे मोदी के साथ रथ पर सवार होकर सभास्थल पर आएंगी.
राजे का भाषण नहीं होना चर्चा का मुद्दा :पीएम नरेंद्र मोदी की सभा के दौरान मंच पर प्रधानमंत्री की एंट्री से पहले वसुंधरा राजे की गैरमौजूदगी और बाद में भाषण नहीं दिए जाने के सियासी मायने क्या होंगे ? यह सवाल अब अहम हो चुका है. दो बार राज्य की मुखिया का पद संभालने के अलावा राजे दो बार राजस्थान भाजपा की प्रदेशाध्यक्ष भी रहीं हैं. इस लिहाज से हर बड़े कार्यक्रम में राजे की मौजूदगी को भी अहम समझा जाता है, तो उनके भाषण को पार्टी की मौजूदा रणनीति के रूप में देखा जाता है. जब राजे की मौजूदगी के बावजूद उनका भाषण नहीं होता है, तो फिर इसकी वजह तलाशने का कारण भी देखा जा रहा है.